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CalmKazi
मैं कभी; बतलाता नहीं पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ यूँ तो मैं; दिखलाता नहीं तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ इक दफ़ा; यूँ ही देखे तू मुझे पिघल के बस मुस्कुराता हूँ माँ देख लूँ; आंसू तेरी आँखों में सहम के खुद थम जाता हूँ माँ मुझको यूँ; दूर रख के तू कैसे करे लाड़ मेरा तू माँ गिर गया; कहीं यूँ ही जो मैं मलहम कैसे लगाए तू माँ क्या इतना बुरा; हूँ मैं माँ क्या इतना बुरा...मेरी माँ ! - CalmKazi & Prasoon Joshi One more entry to the #तज़मीन Challenge inspired by Saket Garg's and Shubhi Khare's quotes on #mother. Thanks to Ayena ma'am and Sudhanshu sir for creating this challenge This one is inspired from the famous Prasoon Joshi penned song "माँ" from Taare Zameen Par. 1st 4 and last 2 lines are from the song. Rest is my own creation. Dedicated to my mother. माँ मैं कभी; बतलाता नहीं पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
One more entry to the #तज़मीन Challenge inspired by Saket Garg's and Shubhi Khare's quotes on #Mother. Thanks to Ayena ma'am and Sudhanshu sir for creating this challenge This one is inspired from the famous Prasoon Joshi penned song "माँ" from Taare Zameen Par. 1st 4 and last 2 lines are from the song. Rest is my own creation. Dedicated to my mother. माँ मैं कभी; बतलाता नहीं पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
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इक ख्याल आ कर ठहरा है शब्द धीमी आंच पर रख छोड़े हैं मिसरे मसालों संग सजा रखे हैं नज़्म पकने में समय लगेगा स्याही के सॉस से स्वाद बढ़े शायद सवालों के आटे को गूंथ रखा है कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम सादे काग़ज़ पे लिख के नाम तेरा ये जो मुस्कान सा तैर रहा हूँ अब वही मुकम्मल नज़्म है मेरी एक और #तज़मीन जो बीवी से करे प्यार वो नज़्मों से करे इकरार गुलज़ार साब की इन लाइनों पर आधारित है ये - नज़्म उलझी हुई है सीने में मिसरे अटके हुए हैं होठों पर उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
एक और #तज़मीन जो बीवी से करे प्यार वो नज़्मों से करे इकरार गुलज़ार साब की इन लाइनों पर आधारित है ये - नज़्म उलझी हुई है सीने में मिसरे अटके हुए हैं होठों पर उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
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रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है रात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं कांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता है ख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है आहटों से कुछ छाप सी छोड़ जाती है सरसरी से ख़ामोशी का सिक्का चुराती है और हवाओं का नमदा बिछा रहता है सायों का आसेब फीका रह जाता है जमघट लगा है ख्वाबों का ड्योढ़ी पर इक बार सोचता हूँ पसरने दूँ खामोश रहता है ये मन मेरा कहीं रैन से आगे बसेरा न बन जाए चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती है और सन्नाटों की इक धूल सी उड़ी जाती है काश इक बार कभी नींद से उठकर तुम भी हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है - CalmKazi और गुलज़ार #तज़मीन गुलज़ार साब की 8 पंक्तियों के बीच अपनी दो नज़्मों से लुका छुपी खेल रहा हूँ । इस कवि के अस्तित्व में अगर किसी भी हस्ती का हाथ है तो वो गुलज़ार साब हैं । शोभा ख़राब की है उनके लफ़्ज़ों की थोड़ी । (1st and 4th Stanza is his) inspired by Sudhanshu sir and Ayena ma'am #CalmKaziWrites #YQBaba #YQDidi #hindi #nazm #poetry #night #Gulzaar #Description #Moonlight #Imagery #हिंदी #कविता #नज़्म #रात #देखिये #गुलज़ार #तज़मीन
#तज़मीन गुलज़ार साब की 8 पंक्तियों के बीच अपनी दो नज़्मों से लुका छुपी खेल रहा हूँ । इस कवि के अस्तित्व में अगर किसी भी हस्ती का हाथ है तो वो गुलज़ार साब हैं । शोभा ख़राब की है उनके लफ़्ज़ों की थोड़ी । (1st and 4th Stanza is his) inspired by Sudhanshu sir and Ayena ma'am #calmkaziwrites #yqbaba #yqdidi #Hindi #nazm poetry #Night #gulzaar #Description #moonlight #Imagery #हिंदी #कविता #नज़्म #रात #देखिये #गुलज़ार #तज़मीन
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