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CalmKazi

#NAPOWRIMO 3/30 Part 6 of गाथा-ए-दरख़्त Click on #GathaEDarakht for more parts. #calmkaziwrites poetry #yqbaba

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//सार//

कभी ज़मीं पे गिरे ख़ामोश पत्तों से पूछो 
के वाक़िफ़ थे वो टूटने से पहले
हश्र क्या रहेगा आगे ज़िंदगी का?
जवाब में खामोशी ही सुनता है ये क़ाज़ी 
इसका इल्म ना उन्हें है ना हमें 
के कौनसा मोड़ आख़िरी रहेगा 
के किस तरफ़ ये वक़्त का साया फिरेगा

बस लुका छुपी में दिन निकलता है 
हवाओं संग थोड़ा गुनगुना लेने से खर्चता है 
और किसी एक दिन धूपों का गुच्छा
गोद में आ पसरता है 
हर एक ज़िंदगी यूँ ही सिमट के आगे चलती है 
और मौत के बाद राहगीरों की मिट्टी बनती है 
बस यही बात है 

ना सीखने को कहता है 
ना बूझने को पूछता है 
दरख़्त बस बिन कहे 
चक्र का ताना-बाना बुनता है  #NaPoWriMo 3/30

Part 6 of गाथा-ए-दरख़्त

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CalmKazi

Part 5 of गाथा-ए-दरख़्त Click on #GathaEDarakht for more parts. //पतन// रोज़ की धूप को अपने पर सहता, एक पेड़ राहगीरों को छांव देता।

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//पतन//

रोज़ की धूप को अपने पर सहता,
एक पेड़ राहगीरों को छांव देता।
उस पेड़ पर अनेक थी टहनियाँ नयी पुरानी,
एक जवान थी कोंपल जिसे मानते सब सयानी।
वो सवालों और बातों के बीच बड़ी हुई
और धूप सेंकतीं ज़मीन को देखती रही।
एक रोज़ वो बोल पड़ी अपने तने से
“कुछ कर गुज़रती मैं भी ज़मीन से,
आते जाते सब राहतों की ख़ैर देते हैं 
हम भी वहाँ जा कर कुछ कह लेते हैं”
उसने बनायी साँठ गाँठ अपनी टहनी से
बोली तूफ़ान में उड़ चलते हैं जल्दी से।
बहुत इंतज़ार बाद आयी वो हवा 
बूढ़ी टहनी का जिसने साथ दिया।
बेफ़िक्र हो गिरी शहतूत से वो पत्ती 
ज़माने को दिलचस्पी, टहनियों में थी।
धरती के गर्भ में उसके जाने का अलग क़िस्सा है 
शायद वो किसी तने का हिस्सा है। Part 5 of गाथा-ए-दरख़्त

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//पतन//

रोज़ की धूप को अपने पर सहता,
एक पेड़ राहगीरों को छांव देता।

CalmKazi

Part 4 of गाथा-ए-दरख़्त Click on #GathaEDarakht for more parts. छड़ी इतना खुश हूँ के खुद को अब बदज़ात समझता हूँ ।

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इतना खुश हूँ के खुद को 
अब बदज़ात समझता हूँ ।
ख़ुदी को खामोश करने, 
दुखों से गले मिलता हूँ ।।

क्योंकि वो रोती नहीं
हँसती सुनाई देती है ।
उन आंसुओं में शायद
हस्ती दिखाई देती है ।

मैं तो हाथ थामे 
सड़क पर आगे बढ़ाता हूँ ।
खुले मैदानों में 
पीछे हट जाता हूँ ।

पहले था घना दरख़्त
आज भी उतना ही तना हूँ ।
उनकी छाँव न है मेरी,
पर सहारा बना हूँ । Part 4 of गाथा-ए-दरख़्त

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छड़ी

इतना खुश हूँ के खुद को 
अब बदज़ात समझता हूँ ।

CalmKazi

Part 3 of गाथा-ए-दरख़्त Click on #GathaEDarakht for more parts. ये जो कचरते पत्ते राहों पर बिछे हैं । इनकी आवाज़ मुझे कुछ याद दिलाती है ।

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ये जो कचरते पत्ते 
राहों पर बिछे हैं ।
इनकी आवाज़ मुझे
कुछ याद दिलाती है ।
लहलहाते हुए भी ये,
एहसास कराते थे राहत का ।
आज बिछे पड़े ज़मीन पर
कदमों की आहट सहलाते हैं ।
पेड़ो की चरमराती लोरियों से
खुद को सुलाते हैं ।। Part 3 of गाथा-ए-दरख़्त

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ये जो कचरते पत्ते 
राहों पर बिछे हैं ।
इनकी आवाज़ मुझे
कुछ याद दिलाती है ।

CalmKazi

Part 2 of गाथा-ए-दरख़्त Click on #GathaEDarakht For more parts #सूखापेड़ #पेड़ #calmkaziwrites #yqbaba #yqdidi सूखा पेड़

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आज सूख गया है वो 
और पड़पोते की बारी है
न फल हैं देने को
न फूलों की क्यारी है
फिर भी वो बिना बोले तैयार है
काठ अपना किसी छत को दे,
और सींकों से कोई घोंसला बने

एक सूखे पेड़ की नहीं कोई अभिलाषा है,
हर पल छाँव देना ही उसे आता है ।। Part 2 of गाथा-ए-दरख़्त

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सूखा पेड़

CalmKazi

Click to check out my current works below #calmkaziwrites 👇 STORIES #HTBKRT (हम तो बस कह रहे थे - Small Town Musings) #thumbsizedstories (Short Stories) #CalmKaziStories (Stories in Episodes)

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चपल, चंचल, चिंतामणि, जिसकी लेखनी न शर्माती ।
इलाहाबाद में बीता बचपन, जयपुर में अल्हड़ घूमें ।
पुणे में इंसान बने, परदेस में साहब हुए ।
दूर रहकर मिट्टी से थोड़ा कुछ जो सीखा,
पन्नों में ही रह जाता था सरीखा ।
कॉमिक और फिल्मों का प्यार न छूटा,
फिर एक दिन YQ का छींका फूटा ।
सोते शायर ने करवट ली ।
लेखनी फिर बोल पड़ी ।
आज कुछ महीने हो चले हैं ।
अभी भी हम तो बस कह रहे हैं ।। Click to check out my current works below #CalmKaziWrites 
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CalmKazi

अर्सों से बैठा है वो,
वहीँ जहाँ पर कोई नहीं आता ।
कर्मों से बना है वो,
किसी को भी वो नहीं भाता ।
आसरा देता है वो,
पर पानी नहीं माँगा कभी;
अटल रहता है वो,
जब तक साँसे नहीं थमती ।
उसके तख्तों से, 
फिर तुम कुछ बनाते हो ।
टहनियों से सींक भी ले आते हो ।
उन्होंने बहुत कुछ देखा है,
पौध से असीम, और सीमाओं में विलीन,
दरख्तों का यही कुछ सलीका है ।
हमने उन्हीं से ये सब सीखा है । Part 1 of गाथा-ए-दरख़्त 

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