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Neha Singh
ये उदासियाँ मेरी., इक रोज़ देंगी गवाही मेरे प्यार की...!! मैं कफ़न नहीं, ओढ़ कर मरूँगी चुन्नी मेरे यार की...!! #वज़ह #opensky #दुल्हन #कफन #चुन्नी #प्यार #गवाही
Royal writer Sandy
मुन्नी मन्नी ओडे चुन्नी गुड़िया खूब सजाई| किस गुड्डे के साथ हुई तय इसकी आज सगाई ? मुन्नी मन्नी ओडे चुन्नी कौन खुशी की बात है आज तुम्हारी गुड़िया प्यारी क्या बड़ी बारात है poem
poem
read moreHemant Rai
मोहल्ले वाला प्यार......उफ्फ! पूरे मोहल्ले में था ये शोर की की तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा, तीज़- त्यौहारों, संक्रांति के दिन वो आसमान में पतंगों के और इधर हमारी आंखों के पैंचो का लड़ना और इन सब के साथ, गलियों में जमघट लगाए, खुसफुसाहट करती हुई वे औरते, वैसे तो घर में मुझे निहायत ही आलसी समझा जाता था। पर तुम्हारा मोहल्ले में आने के बाद, मां जब भी दुकान से कुछ मंगाती थी तो मैं ही हर बार सामान लेने के लिए सबसे पहले फ़रार हो लिया करता था, अब मेरे घर का हर एक प्राणी अचंभे में था कि,ये आलसी कब से इतना मेहनती हो गया...दुकान के चार चक्कर लगाने के पीछे तुम थी, की अगर इस बारी तुम्हारा एक भी दीदार हो जाए तो मानो दिन सा बन जाएगा। और तुम्हारा भी यूं कभी गीले कपड़ों को रस्सी पर डाल सुखाना, कभी सर पर चुन्नी औढ़ कर धूप से बचते हुए, आलू के पापड़ को धूप दिखाना, तो कभी छत पर बने उस छोटे से मंदिर में धूप जलाना, इन सब के दौरान छुपते-छुपाते हुए लबो पे मंद-मंद मुस्कुराहट लाते हुए तुम्हारा मुझे और मेरा तुम्हे देखने की इस लुक्का छि्पपी में तुम्हारी मां का अचानक से तुम्हे आवाज़ देकर बुलाना और सर पर चुन्नी डालकर अंतर्मन में मुस्कुराहट और बाहरी चेहरे पर डर लिए हुए तुम्हारा यूं भाग जाना...उफ्फ! रह रहकर याद आता है मुझे, चारो ओर मोहल्ले में था ये शोर की की तुम मेरी हो और मैं यहां तक जानते थे तुम्हारी वो सहेलियां, मेरे दोस्त, तुम्हारी घर की वो बिल्ली, वो गली के आवारा कुत्ते, जो अक्सर मुझ पर बस भौंका करते थे हां, काटते नहीं थे। तुम्हारे घर की खिड़कियों की वो जालिया, दरवाजे़, छज्जे की वो ग्रिल, वो गहरी रात की शांत चुप्पी, वो दिन का कनो में चुभता वो शौर...! पर अब ये जो तुमने मुझे अब देखना भी बंद कर दिया है,क्या मेरी सूरत बद्दतर हो गई है या तुम्हारी नज़रें कमजो़र। और हां...अब तीज़ त्योहारों पर पतंगे तो उड़ती हैं पैंचे भी लड़ते हैं, पर कब कट जाते हैं! ~हेमंत राय। #MeraShehar मोहल्ले वाला प्यार......उफ्फ! पूरे मोहल्ले में था ये शोर की की तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा, तीज़- त्यौहारों, संक्रांति के दिन वो आसमान में पतंगों के और इधर हमारी आंखों के पैंचो का लड़ना और इन सब के साथ, गलियों में जमघट लगाए, खुसफुसाहट करती हुई वे औरते, वैसे तो घर में मुझे निहायत ही आलसी समझा जाता था। पर तुम्हारा मोहल्ले में आने के बाद, मां जब भी दुकान से कुछ मंगाती थी तो मैं ही हर बार सामान लेने के लिए सबसे पहले फ़रार हो लिया करता था, अब मेरे घर का हर एक प्राणी अचंभे में था कि,ये आ
#MeraShehar मोहल्ले वाला प्यार......उफ्फ! पूरे मोहल्ले में था ये शोर की की तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा, तीज़- त्यौहारों, संक्रांति के दिन वो आसमान में पतंगों के और इधर हमारी आंखों के पैंचो का लड़ना और इन सब के साथ, गलियों में जमघट लगाए, खुसफुसाहट करती हुई वे औरते, वैसे तो घर में मुझे निहायत ही आलसी समझा जाता था। पर तुम्हारा मोहल्ले में आने के बाद, मां जब भी दुकान से कुछ मंगाती थी तो मैं ही हर बार सामान लेने के लिए सबसे पहले फ़रार हो लिया करता था, अब मेरे घर का हर एक प्राणी अचंभे में था कि,ये आ
read moreDEVANSH RAJPOOT
शांत वातावरण......... ना किसी की आहट और ना ही चिड़ियों की चहचहाट सिर्फ छिपता हुआ सूरज और लबों पे मुस्कराहट एक हलकी धुंधली सी शाम बस तेरी यादों के नाम कुछ फड़फड़ाते ख्वाब और कुछ बेमुक्कमली हंसी कुछ कपकपातें हर्फ़ और दिल जैसे कोई उदास सखी कुछ बल खाते हुए गीत और कुछ डगमगायी प्रीत कुछ जलील हुई रूह और कुछ बेतहासा जिस्म इन सब को सुलझाते हुए मैं खुद उलझ रहा था आज की शाम मैं तेरी यादों में झुलस रहा था उन लहराते पत्तों को देख तेरी चुन्नी याद आ जाती और फिर उस चुन्नी में तू भी कही दिख जाती यूं रकीब की तरह वो ठंडी हवा भी मुझे आज दर्द दे रही थी कुछ सुकुनाहट के चक्कर में तेरे स्पर्श का जख़्म दे रही थी मैं यूं टुटा हुआ चाँद हुँ जो सूरज के सामने टिक ना पाता हुँ और मैं यूं हर शाम तेरी यादों के सामने मैं झुलस जाता हुँ - DEVANSH RAJPOOT #poet #ghazal
DEVANSH RAJPOOT
- शाम - शांत वातावरण......... ना किसी की आहट और ना ही चिड़ियों की चहचहाट सिर्फ छिपता हुआ सूरज और लबों पे मुस्कराहट एक हलकी धुंधली सी शाम बस तेरी यादों के नाम कुछ फड़फड़ाते ख्वाब और कुछ बेमुक्कमली हंसी कुछ कपकपातें हर्फ़ और दिल जैसे कोई उदास सखी कुछ बल खाते हुए गीत और कुछ डगमगायी प्रीत कुछ जलील हुई रूह और कुछ बेतहासा जिस्म इन सब को सुलझाते हुए मैं खुद उलझ रहा था आज की शाम मैं तेरी यादों में झुलस रहा था उन लहराते पत्तों को देख तेरी चुन्नी याद आ जाती और फिर उस चुन्नी में तू भी कही दिख जाती यूं रकीब की तरह वो ठंडी हवा भी मुझे आज दर्द दे रही थी कुछ सुकुनाहट के चक्कर में तेरे स्पर्श का जख़्म दे रही थी मैं यूं टुटा हुआ चाँद हुँ जो सूरज के सामने टिक ना पाता हुँ और मैं यूं हर शाम तेरी यादों के सामने मैं झुलस जाता हुँ - DEVANSH RAJPOOT #khubsuratalfaz #follow #sham #writer #storyteller
#khubsuratalfaz #follow #sham #writer #StoryTeller
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