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Shashi Bhushan Mishra

#ढ़क जाती अच्छाई#

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ढ़क जाती अच्छाई  बुराई के नीचे, 
छुप जाती पहचान मुखौटे के पीछे,

उम्मीदों पर फिरता  पानी देखा तो, 
घबराकर हम पाँव खींच लेते पीछे,

खोकर अपनी क्षमताएँ लाचार हुए, 
चलने को मजबूर सभी पीछे-पीछे,

धरती चाँद सितारे नभ में हैं कितने,
हैं गतिशील सदा अभ्यंतर के पीछे,

दुनिया की दौलत में शांति नहीं भाई, 
फिर भी  भाग  रहे सारे धन के पीछे,

प्यास हृदय की बुझा नहीं पाता कोई, 
बियाबान  में  भटक रहे मन के पीछे,

अविनाशी  बैठा  अंतर्घट  में  'गुंजन',
माया भटकाती अज़ीम जन के पीछे,
     ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
           चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #ढ़क जाती अच्छाई#

Saumy@

#nojotopost#

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चाँद  चाँद को देखकर मायूस न होना 

        अधा रहता हैं वो शिव के माधे पर सवार 

पूरा होने पर ढ़क जाता हैं तारों से वो

 दिन में रहकर भी दिखता नहीं हैं वो
  
रात में भी तारों से ढ़क जाता हैं वो

 वो तो चाँद हैं कभी अकेले नहीं आता हैं ।।।
वो।। #nojotopost#

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 7 - गायक श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए। वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है। वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है।

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|| श्री हरि: || 
7 - गायक

श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए।

वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है।

वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है।

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