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Ananta Dasgupta
🔱 न मृत्यु का भय मुझे, ना किसी अनर्थ की चिंता है। समा चुका हूँ भीतर सबकुछ, अब समस्या भी शून्यता है। जिन्हें जाना हो वह अवश्य जाएंगे, निश्चय सबका अटल है। चाहे प्रेम से हो या याचना से, रोकने के प्रयास विफल है। जलते हुए, सहते हुए, सबकुछ है माना, अब हठ है इस अग्नि को हवन बनाना। मेरे आँसुओं से नित्य अब तुम्हारा स्नान होगा। मेरे भस्म से तुम्हारी आरती होगी जब मेरा दहन होगा। ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #Shiv #Monday
Ananta Dasgupta
ক্লাইন্ট কে মেল করার পড়ে রিপ্লাই আসল কিছু জিনিস আলোচনা করার জন্য ক্লাইন্ট ভি.সি করতে চায়। অরিন্দমের মন এবার ছটফট করছে কিন্তু বারন করার কোনো জায়গা নেই। মিটিং শুরু হওয়ার আগে প্রিশা কে কল করল --"শোনো। আমার একটা মিটিং পড়ে গেছে হঠাৎ। আমার দেরি হয়ে যাবে। তুমি চলে যাও।" --"ঠিকাছে! আমি আছি। তুমি শেষ করে এসো।" --"কেন জেদ করছ? কেন অকারণে আমার জন্য ৩:৩০ ঘন্টা ধরে দাড়িয়ে আছো?" --"কিছু জিনিস অকারণে হয়ে। আমি যাচ্ছি না।" অরিন্দম মাঝখানে মিটিংয়ে ঢুকে পড়ল। সবকিছু শেষ করতে গিয়ে ঘড়ি তে দেখল প্রায় ৬:৫৮ আর শুরু হল তুমুল জোরে বৃষ্টি। বাইরের অবস্থা দেখে অরিন্দমের চিন্তা আরও বেড়ে গেল। যখন কল করল তখন অন্য কলে ব্যস্ত পেল কিন্তু কিছু লেখার আগেই একটা মেসেজ এসে পড়ল অরিন্দমের কাছে। --"আমি বৃষ্টি তে ভিজিনি। আমাকে যাওয়া নিয়ে কিছু বলবে না। আর এমনিও, আমি যেতে পারবো না এখন। আমি আছি।" অরিন্দম কাজ শেষ করবে ঠিক তখনই ওর একটা কলিগ এসে বলল --"শোনো না। তোমাকে একটা ছোট্ট কাজ দিচ্ছি। আমাকে বাড়ি যেতে হবে না হলে বাস পাবনা। এটা একটু করে দেবে প্লিজ়?" অরিন্দম আর না বলতে পাড়ল না। কাজ শেষ করে দেখল বৃষ্টি বন্ধ হয়ে গেছে আর ঘড়ির দিকে তাকিয়ে দেখল ৮:১০ হয়ে গেছে। ছুটলো চায়ের দোকানের দিকে। দেখল প্রিশা একাই বসে। অরিন্দম কে দেখে প্রিশা এক অদ্ভুত মিষ্টি হাঁসি দিল। --"আমার খিদে পেয়েছে। তুমি আমাকে ফুচকা আর কোল্ড ড্রিংকস খাওয়াও।" অরিন্দম একটু হেঁসে ওর আবদার গুলো পুরো করল আর এর মাঝে প্রিশা সারাদিনের নিজের সমস্ত গল্প বলল। রাত আর বৃষ্টির জন্য বাস হঠাৎ করে কমে গেল। বেশি রাত হতে দেখে অরিন্দম একটা ক্যাব বুক করল আর প্রিশা কে তুলে দিল। লোকেশন দেখার জন্য ম্যাপ অন রাখল নিজের মোবাইলে। কিন্তু কিছুক্ষণ কথা বলার জন্য একটা মেয়ে ৬ ঘন্টা অপেক্ষা করল, এইটা ভেবে অরিন্দম অবাক। খালি রাস্তায় হাঁটতে হাঁটতে অরিন্দম দেখল প্রিশা কল করছে। --"সাবধানে যেও। বাড়ি পৌঁছে জানিও। আর ততক্ষণ কলে থাকো।" --"আহ! কতটা খেয়াল রাখে আমার!" --"যত দিন বেঁচে আছি, ততদিন খেয়াল রাখবো।" শেষ কথাটা শুনে অরিন্দম থেমে গেল। এরকম কথা ওর মনে গেঁথে আছে। অন্য একজনের বলা, অনেক আগে। "যত দিন বেঁচে আছি, আমি তোমাকে হারিয়ে যেতে দেব না।" সেই পুরোনো কথাটা মনে পড়ে গেল অরিন্দমের। মনে হল কিছু চাপ পড়েছে ভিতরে। ওদিকে প্রিশা হ্যালো.. হ্যালো করে যাচ্ছে। --"হ্যাঁ বলো।" --"কোথায় ছিলে?" --"না না! কিছু না। তুমি বলো।" --"আগে বলো, কি ভাবছিলে?" --"ভাবছিলাম না। তোমাকে একটা কথা বলতে পারি?" --"হ্যাঁ।" --"তুমি এত সহজ ভাবে এত বড় কথা যে বলল, সেটা করা এত সোজা নয়। এরকম অঙ্গীকারের মুখোমুখি আগেও হয়েছি কিন্তু সারা জীবনের কথা দেওয়া আর সেটা রাখার তফাৎ আমি জানি।" ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #story #part2
Ananta Dasgupta
অরিন্দম অফিসে ঢুকতেই ওর মাথার ওপর কাজ চাপিয়ে দেওয়া হল। ক্লাইন্টৈর ডেডলাইনের বাহানা লাগিয়ে মেল করে দিল কি আজকের মধ্যে সমস্ত রিপোর্ট লাগবে। অরিন্দম কাজ করে দেয় কিন্তু অহেতুক কিছু জিনিস ওর সহ্য না। ওর টিমের সমস্ত এল1 দের ডাকল ওদের পুরো সপ্তাহের কাজের জন্য। সবার শেষে ডাক পড়ল প্রিশা। প্রিশা গত সপ্তাহে কোনো কাজ করে উঠতে পারেনি আর অরিন্দম এর জন্য কথা শুনেছে। প্রিশা কে কেবিনে ডেকে অনেকক্ষন বোঝাল কিন্তু একটু কড়া করে। প্রিশা চলে যেতে কাজ নিয়ে বসল অরিন্দম। কাজের মাঝে কখন লাঞ্চ হয়ে গেছে ওর কোনো টের নেই। হঠাৎ ফোন বেজে ওঠে আর দেখে প্রিশা কল করছে। --"বল! কিছু লাগবে তোমার?" --"ঘড়ি তে কটা বাজে দেখেছ?" অরিন্দম দেখল প্রায় খাওয়ার সময় পেড়িয়ে গেছে কিন্তু প্রিশা কে বললে আবার দশটা কথা হবে তো কিছু কথা বাড়াল না। --"আমি খেয়ে নেব। তুমিও খেয়ে নাও।" --"আমার খাওয়া হয়ে গেছে। আমি কল করেছিলাম কেননা আমাদের কে আজকে হাফ ডে দিয়ে দিয়েছে। কিন্তু তুমি সেই যে কেবিনে ঢুকেছ, আর বেড়াওনি। মেসেজ করলাম কিন্তু কোনো কথা নেই।" --"বাহ! বেশ ভালো। যাও বাড়ি গিয়ে রেস্ট নাও।" --"আমি বলেছি তোমাকে আমি বাড়ি যাচ্ছি? আমি আমাদের চায়ের ঠেকে যাব। তোমার ছুটি হলে বল।" অরিন্দম কথা শুনে অবাক হয়ে গেল। অকারণে একটা মেয়ে ৪-৫ ঘন্টা অপেক্ষা করবে এইটা ওর ভালো লাগেনি। --"প্রিশা আমার এক গাদা কাজ পরে আছে। যদি খুব তাড়াতাড়ি করি তবুও এখনও ৪:৩০ ঘন্টা বাকি। তুমি বাড়ি চলে যাও।" --"আমি তোমাকে রিকুয়েস্ট করছি না। জানাচ্ছি। আমি আছি।" প্রিশা বলে ফোন রেখে দিল। --"কি করবে অপেক্ষা করে তুমি এতক্ষণ? তাও আবার এই রোদে সারাদিন ওই টিনের চালের নিচে! তুমি ওরকম থাকলে আমার আরও টেনশন হবে।" অরিন্দম মেসেজ করে বলল। --"আমি অপেক্ষা করব সেটা আমার ব্যপার। তুমি চিন্তা করছ কেন? তুমি কাজ শেষ করে বেড়াও। আর হ্যাঁ, আমি তোমাকে জালাব না আজকে। কিন্তু আমি আছি। এখানেই।" জেদ দেখে অরিন্দম বেশি কিছু বলল না। আবার কাজের ভিতরে ঢুকে পড়ল। কাজের মধ্যে তিন বার নানান কারণে ওকে এদিক ওদিক থেকে লোকেরা ডেকে নয় কথাও নিয়ে যাচ্ছে আর নয় গল্প দিচ্ছে। অরিন্দম সময়ের হিসাব লাগিয়ে যাচ্ছে আর প্রত্যেক বার ওর যাওয়ার মেয়াদ বেড়েই যাচ্ছে। ২ ঘন্টা পেরোতে একবার মেসেজ করল প্রিশা কে --"প্লিজ় প্রিশা। এই ভাবে বসে থেকো না। বাড়ি যাও।" --"আমি আছি। ব্যস!" ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #bengalistory #Firstpart
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रुद्राक्ष को थामकर आदेश ने उसे कसकर अपनी मुट्ठी मे पकड़ लिया। रुद्राक्ष के हर हिस्से में वो अपने दोस्त को ढूंढ रहा था। आँखों में सिर्फ आँसू थे और कुछ नहीं। --"शिव... स.. दा... सहा.... यते!" रुंधे हुए गले से बहुत देर बाद उसकी आवाज़ निकली। अचानक उसे याद आया कि रुद्राक्ष तो उसकी माँ ने पूजा घर में रखा था। एक हलचल के साथ उसने अपना सिर उठाया और फिर जो देखा, बस देखता रह गया। उसके सामने कोई खड़ा है, शांत, एक अनदेखी आकृति। उसके घर में चारों तरफ कर्पूर जैसी खुश्बू फैल गई। आदेश कुछ समझ पाता कि तभी उसे उस आकृति ने हाथों से उठकर अपने पास खड़ा किया। आदेश ने अब उसे ध्यान से देखा। वो व्याघ्र चर्म पहने हुए खड़ा था जिसने आदेश को बचाया। शिवाय! --"कहा था ना तुझे एक तूफान के बारे में।" इतना कहते ही आदेश शिवाय के गले लगकर फफकते हुए रोने लगा। सारी ज़िंदगी के दुख, उसके इकलौते दोस्त के सामने बाहर आ गए। वो चीख रहा था और शिवाय उसको थामकर संभाले हुए थे। --"शांत हो जा। बस! बहुत रो लिया।" उसके सिर को सहलाते हुए शिवाय ने बिठाया। --"क्यों शिव? मैं ही क्यों? मेरे साथ ऐसा क्यों?" आदेश ने सिसकते हुए पूछा। --"क्यों! वो इसीलिए दोस्त क्योंकि जिसे तूने चाहा, उसने तुझे नहीं चाहा।" शिवाय के इस जवाब से आदेश चुप तो हो गया पर चौंक भी गया। --"हाँ! दिप्ति ने तुझे कभी चाहा ही नहीं। इसीलिए उसने जिसमें हामी भरी, उसे वो चीज़ मिली। उस हामी में तू कभी नहीं था। मैं तुझे कुछ और भी कहने आया हूँ।" आदेश सुनने लगा। --"जो दर्द अंदर है, उसे बर्दाश्त कर, भार उठा उसका। पीले इस ज़हर को ज़िंदगी भर के लिए और आगे बढ़। मैं तो चल ही रहा हूँ। कभी खुद को अकेला मत समझना। भले ही तुझमें बदलाव आए पर एक बात याद रखना.... जब तक तेरे दिल में बुराई पैदा नहीं होती तबतक मैं तेरा साथ दूँगा।" --"आप सब कुछ जानते थे, फिर उसे मेरे पास लाए क्यों?" --"हर कारण बताया नहीं जा सकता, दोस्त। आज अगर दीप्ति न होती तो शायद तू मुझसे रुबरु न होता। हर चलने वाला घटनाक्रम आने वाले घटनाओं का सूचक होता है। एक इंटरप्रिटेशन की तरह।" --"हर दर्द और हर तकलीफ के खत्म होने की एक तारीख होती है। उसी तरह खुद के हाथों हुई गलतियों को भुगतने की सज़ा की भी एक समय सीमा होती है। जब जब दोस्त बनकर आऊँगा तो शिवाय बनकर आऊँगा। तेरी लड़ाई अब शुरू होगी तब तेरा सारथी बनकर आऊँगा।" आदेश बिलकुल चुप था। ऐसा लग रहा है जैसे वो हार चुका है और शायद इसी वजह से वो शांत हो गया। --"मैं क्या करुँ तबतक?" --"अपने तूफान से टकरा। अपने दर्द को अपनी ढाल बना। जिस अंधेरे से लड़ रहा है उससे नज़र मिला। जीत सिर्फ तेरी होगी। ऐसे बहुत सारी चीज़ है जो तेरी समझ से परे हैं। तबतक के लिए अपने करम पर ध्यान करते रहना और कहना... " "शिव सदा सहायते!" आदेश ने धीमी आवाज़ में कहा। ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #shivaay #part2
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White हर दिन के जैसे आदेश घर में आया और बिना कोई आवाज़ किए अपने कमरे में चला गया। बैग रखके उसने जेब से रुद्राक्ष निकाला और अपनी माँ के हाथ में देकर कहा --"माँ, ये पूजा घर में रख देना।" --"लेकिन तुझे ये रुद्राक्ष दिया किसने?" --"वो रास्ते में पानी था तो एक आदमी ने मेरी मदद की। बाद में उसी ने दिया।" आदेश ने सिर्फ इतना ही कहा। शायद इतना कहना ही लाज़मी था क्योंकि जो वो महसूस कर रहा था वो सिर्फ वही जान रहा था। बेटा होने के नाते अपने आँसू घरवालों को नहीं दिखा सकता। अगर उसके माँ-बाप ने उसके आँसू का एक कतरा भी देख लिया तो उन्हें जो तकलीफ होगी वो आदेश बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। किसी को आँसू न दिखे इसलिए सर झुकाकर उसने अपने चेहरे पर पानी की छींटे मारी पर जैसे ही मुड़ा उसके पिता ने उससे पूछा --"तेरी आँखें इतनी लाल क्यों है? क्या हुआ है?" --"बारिश में बहुत देर तक भीगनें से हो गई होगी।" गले को थोड़ा भारी रखकर उसने कहा और पूजा घर में चला गया। घुटने टेककर उसने एकटक शिवलिंग की तरफ देखा पर आँखे भर आने की वजह से वापस धुंधला सा हो गया। आदेश अपना भार नहीं उठा पा रहा था। खाने का तो मन नहीं था पर कोशिश करके खाने के जैसे ही निवाला निगला, उसे उल्टी हो गई। उसकी माँ भागते हुए उसके पास गई और पूछा --"क्या हुआ बेटा? तबीयत खराब हो रही है?" आदेश के हाथ पैर काँप रहे थे। शरीर और दिल दोनों कमज़ोर थे और क्योंकि वो ये बता भी नहीं पा रहा था इसीलिए वो बात और खाए जा रही थी उसे। --"आपलोग सो जाओ। मुझे ऑफिस का कुछ काम है तो मुझे देर होगी।" --"तुझे जो करना है कल करना। एक तो बारिश में भींग के आया है और अब देर रात तक जगकर अपनी तबीयत और बिगाड़ेगा।" आदेश के पिता ने जवाब दिया। बात सही थी पर लहज़ा गलत। आदेश ने पलभर उनको देखा और काम पर बैठ गया। थोड़ी देर के बाद सब सो गए और अब रात धीरे धीरे गहरी होने लगी। आदेश चुप था लेकिन अंदर एक तूफ़ान था जो कभी भी बाहर आ सकता था। अचानक लैपटॉप पर रखी हुई दिप्ति की एक तस्वीर पर माउस का बटन दब गया। २ साल पुरानी तस्वीर जहाँ दोनों साथ बैठे थे। एक झटके में आदेश ने लैपटॉप बन्द करके घर को अंधेरा कर लिया। उसका दर्द उसको निगलते जा रहा था। साँस लेने में तकलीफ होने लगी। एक वक्त रुककर उसने अपने खाली घर को चारों तरफ से देखा। उसका हर एक सपना कहीं न कहीं बिखरा पड़ा हुआ था। थककर घुटने के बल वो गिर गया और फिर उसका सारा सैलाब बाहर आ गया। आदेश के दिल-ओ-दिमाग में न जाने कितनी यादों का तूफान एक साथ चलने लगा। सिसकियों की आवाज़ बहुत दूर तक न जाए इसलिए उसने अपने मुंह दबोचे रखा पर आँसू नहीं रोक पाया। वो चीखना चाहता था अपनी किस्मत पर लेकिन मजबूर होकर सिर्फ रोता रहा। उसका शरीर अब जवाब दे रहा था। अपने आप को संभालने के लिए उसने अपने हाथों का सहारा लिया लेकिन अचानक उसका हाथ एक चीज़ को छूते ही रुक गया। अंधेरे में उस चीज को टटोलने के बाद वो समझ गया कि ये रुद्राक्ष है। ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #shivaay #part2
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রুদ্রাক্ষ টা হাতের মুঠোয় রেখে নিজের বন্ধুর কথা ভেবে খুব কাঁদছে। --"শিব...... স.. দা.... স... হা... য়তে।" ভারি নিঃশ্বাসে প্রথম বার এত কষ্ট তে আদেশ ডাকল যাতে। হঠাৎ আদেশের মনে পড়ল রুদ্রাক্ষ তো ওর মা ঠাকুর স্থানে রেখেছিল। মাথা তুলে দেখতেই ওর মুখ হাঁ হয়ে গেল। একটা ছায়া রুপে আকৃতি, কর্পূরের মত গন্ধ আর বাঘের চামড়ার আবরণ। তার দুটো হাত আদেশ কে ধরে তুলল। সামনে আসার পর আদেশ দেখল তার সামনে সেই দাঁড়িয়ে যে ওকে বাঁচিয়ে ছিল। শিবায়! --"বলেছিলাম না আরেকটা ঝড় আসবে।" আদেশ এইটা শুনতেই ওকে জড়িয়ে ধরে খুব কাঁদছে। অনেক বছরের চাপা কষ্ট যেই ভাবে বেড়ায়, আদেশ ঠিক সেই ভাবে শিবায় কে ধরে রেখেছে। চিতকার করছে আঁকড়ে ধরে আর শিবায় ওর মাথায় হালকা করে হাত বুলিয়ে দিচ্ছে। --"শান্ত হও। এবার শান্ত হও। আমি এসছি তো।" শিবায় ধরে এক জায়গায় বসাল। --"কেন? এরকম কেন আমার সাথে?" --"তুই যার কথা বলছিস, সে তোকে কখনই চায়নি।" শিবায় বলল আর আদেশ হঠাৎ স্তব্ধ হয়ে গেল। --"হ্যাঁ। দিপ্তি তোর ভালো চেয়েছে কিন্তু তোকে চায়নি। আর আমি এইটা তোকে কষ্ট দেয়ার জন্য নয়, ওর থেকে গুরুতর জিনিসের জন্য এসেছি।" --"মানে?" --"যেই কষ্টটা নিয়ে চলছিস সেটাকে বহন কর। ভার ওঠা এই বিষের আর এগিয়ে চল। মনে রাখিস নিজেকে একা ভাববিনা। কষ্ট তোকে আমার কাছে নিয়ে এসেছে, হয়তো তোকে পাল্টেও দিতে পারে কিন্তু মনে রাখিস তুই নিজের মনে কখনো খারাপ কিছু আনবি না।" --"যদি সবকিছু জানতে তাহলে পাঠালে কেন ওকে আমার কাছে?" --"সব কারণ বলা যায়না বন্ধু। আজ যদি দীপ্তি না থাকতো তাহলে আমি তোর সামনে এসে দাঁড়াতাম না। কে কোন কারণে আসে, সেটা বলা যায়না। প্রত্যেক ঘটনা একটা অন্য ঘটনার সুত্রপাত হয়। মনে রাখিস।" --"প্রত্যেক কষ্টের আর প্রত্যেক মনস্তাপের একটা সময় থাকে। তোর বন্ধু তে আমি শিবায়। তোর জীবন যুদ্ধে আমি কৃষ্ণ।" আদেশ সব শুনছে চুপচাপ। মন শান্ত হয়েছে কিন্তু কষ্টের এক ভাগ রয়ে গেছে। --"আমি কি করবো এখন?" --"নিজের কষ্ট কে নিজের অস্ত্র বানা। নিজের অন্ধকারের সাথে লড় ততক্ষন যতক্ষণ জিৎ তোর না হয়। সামনে অনেক কিছু ঘটতে চলেছে যা তোর কাছে অজানা। নিজের দায়িত্ব পুরো করতে থাকে আর বলতে থাক" --"শিব সদা সহায়তে।" ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #bengaliquote #shivaay
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আদেশ ঘরে ঢুকল আর প্রত্যেক দিনের মত ও কোনো সারা শব্দ না করে ব্যাগ রেখে নিজের রুমে চলে আসল। বুক পকেট থেকে রুদ্রাক্ষ বের করে মায়ের কাছে গেল আর বলল। --"মা, এইটা ঠাকুরের সামনে রেখে দাও।" --"কিন্তু তোকে কে দিল রুদ্রাক্ষ?" --"রাস্তায় জল ছিল বলে একটা লোক ছেড়ে দিয়ে গেল। সেই দিয়েছে।" বাকি বৃত্তান্ত আর বলল না। ভিতরে ও যে ভাবে ছটফট করছে সেটা একমাত্র ওই জানত। আদেশ ভয় পাচ্ছে যদি ওর চোখের এক ফোটা জল ওর বাবা মা দেখে তাহলে ওদের মনে কষ্ট হবে। ছেলে হিসাবে আদেশ করতে পারবে না সেটা। মাথা নিচু করে নিজের চোখে জল দিল তখন চোখে লাল দেখে ওর বাবা জিজ্ঞাসা করে। --"হ্যাঁ রে! তোর চোখ এত লাল কেন?" --"বৃষ্টি তে ভিজেছি তাই হয়তো।" একটু ভারিক্কি গলায় বলল আদেশ। আদেশ প্রনাম করতে গিয়ে ঠাকুর স্থানের শিবলিঙ্গ কে ভালো করে দেখল কিন্তু চোখে জল আসতে আবার ঝাপসা হয়ে গেল। আদেশ নিজেকে চাপা রাখতে পারছে না। খুব কষ্ট করে উঠল আর খাওয়ার চেষ্টা করল কিন্তু দু গাল খাওয়ার পড়েই বমি করে ফেলল। --"কি হয়েছে? শরীর খারাপ করছে বাবা?" আদেশের মা থালা রেখে ছুটে আসল। ওর হাত পা কাঁপছে, শরীর দুর্বল আর মনে এক পাহাড় সমান কষ্ট। যেহেতু বলতে পারবে না, তাই আরও ভেঙে পড়ছে। --"তোমরা শুয়ে পড়। আমার কাজ আছে অফিসের।" --"তোর যা করার কালকে করবি। এই ভাবে ভিজে, তার পর রাত জেগে শরীরে আবার অসুখ বাঁধাবে।" আদেশের বাবা কথাটা খুব রুঢ় ভাবে বলতে আদেশ তাকাল কিন্তু কিছু বলল না। ল্যাপটপ খুলে কাজে বসে পড়ল। কিছুক্ষণ পরে সবাই শুয়ে পড়ল। রাত বাড়তে বাড়তে বেড়ে যাচ্ছে আদেশের ঝড়। হঠাৎ করে দিপ্তির একটা ছবি তে ক্লিক হয়ে গেল, দুজনে পাশাপাশি বসে। তারাতারি বন্ধ করে ল্যাপটপ সাইড করে আদেশ লাইট বন্ধ করে দিল। ওর শ্বাস কষ্ট বেড়েই চলেছে। নিজের চারপাশের অন্ধকার কে ভালো করে দেখল। আর যেন ঝড় আটকাতে পারেনি, হাঁটু গেড়ে জড় হয়ে নিজের শরীর ফেলে দিয়ে অন্ধকারে কাঁদছে আদেশ। মনের ভিতরে সমস্ত স্মৃতি উথাল পাথাল খাচ্ছে কিন্তু ওর ব্যথা কমছে না। মাঝখানে একবার কুঁকিয়ে উঠল কিন্তু ভয় মুখে হাত চাপা দিয়ে দিল যাতে কেউ সারা না পায়ে। আদেশের শরীর ধীরে ধীরে শিথিল হয়ে যাচ্ছিল। নিজের ভার সামলানোর জন্য যখন আদেশ হাত পিছনে রাখে, তখন হাতে কিছু পড়ল। আদেশ ধরে বুঝতে পাড়ল রুদ্রাক্ষ টা ওখানে। ©Ananta Dasgupta #anantadasgupta #shivaay #bengalistory #part2
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White If the ocean inside you is relaxed, you cannot write. If the strokes are not making a tug in your heart, you cannot write. If you are not bothered about anything, you cannot write. If you are indulged in pleasures, you cannot write. If you are engrossed in your basic duties, you cannot write. When the sound of your pain becomes louder than the waves of the ocean. When you have no ears to listen but a paper beside you. When you feel the tug is pinching you to the deepest level. When your breath becomes uneven. That's the time You Can Write! ©Ananta Dasgupta #Sad_Status #anantadasgupta thoughts about love failure silence quotes quotes
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White Bematlab, bekhauf, bebaak hai dil. Bachha bhi hai aur bhola bhi hai dil. Dil mariz hai, rog hai, la-ilaaj hai. Kabhi do pal ka sahaara hai dil. Jhutha hai, farebi hai, dushman hai dil. Chupi sachai hai, larne ka hausla hai dil. Uljhan hai, andhera hai, galat fehmi hai dil. Khamoshi ka sabab hai, khud ka marham hai dil. Baatein isme samajh na aaye, kaafi pechida hai dil. Ek nazar me sab kuch jaan le, itna aasan hai dil. Dard ka samandar hai, aansuon ka sailaab hai dil. Khushiyon ki khabar hai, sukoon ki dehleez hai dil. Dabi hui chikhein, andekhi siskiyan hai dil. Baatein bahot hai iski, khud ki kitaab hai dil. Khoon se sana hua hai, khoon hi mangta hai dil. Khud me hi jalta rehta hai, fir bhi zinda rehta hai dil. Sari duniya se bhir jaye, itni taaqat hai dil. Khud ko samjhate samjhate haar jaye, itna kamzor hai dil. ©Ananta Dasgupta #love_shayari #Dil #anantadasgupta shayari on love sad shayari shayari status shayari in hindi
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হে গঙ্গা! বয়ে চলেছ তুমি শহরের পাস থেকে, শুধু বয়ে যাচ্ছ। কেন? কেউ রক্তে লাল হচ্ছে আর হাঁসছে পাশবিকতা, তুমি বয়ে যাচ্ছ। কেন? তোমার সামনে আগুনে দাহ করা হল, ভাসিয়ে দেয়া হল তোমার কোলে। তুমি নিরবে ধারণ করে নিলে সেই অস্থি আর বয়ে চলেছ। কেন? তুমি দেহ শুদ্ধ করলে কিন্তু সেই দেহ কারণ হল অপবিত্রতার। ওই অপবিত্রতার তুমি দেখলে নিরবে, তুমি বয়ে যাচ্ছ। কেন? আজ তোমার কিনারা ধরে পথে নেমেছে অনেক রাগ, অনেক প্রশ্ন। তুমি সবকিছু জেনে আসলে না, তুমি বয়ে যাচ্ছ। কেন? হুঙ্কার দাও নিজের স্রোতের, ভেঙে দাও সমস্ত ব্যবধান। এই অন্যায়ের জন্য তুমি শুরু কর যুদ্ধের অভিযান। ডুবিয়ে দম বন্ধ কর তাদের যারা অন্যায়ের সাথে দাঁড়িয়ে। অ্যাসিডে বদলাও নিজেকে, দাও হাড় অবধি জ্বালিয়ে। যদি বইতে তাহলে প্রলয়ের মত করে এবার বয়ে যাও। রুদ্র রুপ ধর নিজের, ছিন্ন ভিন্ন করে এগিয়ে যাও। আশা হারিয়ে যাচ্ছে দেবী, বিচার এবার শাস্তি দাও। নিজের হাতে বিচার নিয়ে তুমি তিলোত্তমা কে শান্তি দাও। ©Ananta Dasgupta #nojotopic #kolkatacase #JusticeAndRevenge #RGkar #revolution #anantadasgupta #Bengali_poem #bengaliquote