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Ajay Amitabh Suman

जब अर्जुन ने युधिष्ठिर पर तलवार निकाल लिया #अर्जुन #युधिष्ठिर #कर्ण #गांडीव #महाभारत Mythology #viral #Trending

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Ansh Rajora

शीर्षक - आत्मा एवम आत्म #गांडीव - अर्जुन के धनुष का नाम #साम - सामवेद एक लंबी कविता पुरुष और प्रकृति के नाम आशा है आप सभी इससे जुड़ पाएंगे समय लेकर पढ़ियेगा कम शब्दों में गहराई भरने की कोशिश की है🙏😊 #yqbaba #yqdidi love #lovepoetry #yopowrimo #fakeera_series

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तू धनुष गांडीव हाथ में
मैं तरकश बाण हो जाऊं

तू वीरांगना जैसी एक
मैं युद्ध विराम हो जाऊं
 शीर्षक - आत्मा एवम आत्म
#गांडीव - अर्जुन के धनुष का नाम
#साम - सामवेद
एक लंबी कविता पुरुष और प्रकृति के नाम आशा है आप सभी इससे जुड़ पाएंगे समय लेकर पढ़ियेगा कम शब्दों में गहराई भरने की कोशिश की है🙏😊
#yqbaba #yqdidi #love #lovepoetry #yopowrimo  #fakeera_series

Pankaj Priyam

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उठा लो गांडीव हे पार्थ
*********************
सच है की युद्ध कोई पर्याय नहीं,
पर बिन इसके अब उपाय नहीं।

संकट में जब पड़ा हो अपना देश,
कहां शोभती तब दया शांति वेश।

हो रहा हरपल मानवता का संहार
संयम साहस को कर रहा  ललकार।
नहीं पाप कोई, है अब पूण्य यही
आतंक के खिलाफ उठाना हथियार।
देख अपनो को खड़ा कुरुक्षेत्र में
अर्जुन ने जब युद्ध से किया इनकार
कृष्ण ने तब भरी हुँकार
उठा लो गांडीव हे पार्थ!
कर डालो दुष्टों का संहार
परिस्थितियां फिर है वही
हो रहे धमाके, बंदूके बरस रही
दहशत में जिन्दगी बसर रही
उजड़ गयी है माँग कितनी
गोदें कितनी हो गयी सूनी।
शांति की राह में मिला है धोखा
इन पथरायी आंखों मे
आंसू नही खून का है कतरा सूखा
बूढ़ी नजरों को है बेटे का इंतजार
खड़ी है बहनें लिए राखी का प्यार
इन अबलाओं के आँचल है खाली
मेंहदी से पहले उजड़ी सुहाग की लाली
किसी आतंकी उग्रवादी को नहीं क्षमा अधिकार
समय कह रहा है फिर से बारम्बार
अमन चैन की खातिर 
उठा लो गांडीव हे पार्थ।
कर डालो दुष्टों का संहार।

     ©पंकज भूषण पाठक "प्रियम "

अभिसार शुक्ल

for #Astitva "अर्जुन की युद्ध चिंता" अभय ह्रदय अशांत है, क्यों ये रक्त अधीर है, क्यों ये विरक्ति तेज़ है , क्यों मृत्यु का अभिषेक है , क्यूँ समय का अभाव है ,

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"अर्जुन की युद्ध चिंता"
अभय हृदय अशांत है,
क्यों रक्त ये अधीर है ।
(पूरी कविता कैप्शन देखे) #NojotoQuote for #astitva
 
"अर्जुन की युद्ध चिंता"
अभय ह्रदय अशांत है,
क्यों ये रक्त अधीर है,
क्यों ये विरक्ति तेज़ है ,
क्यों मृत्यु का अभिषेक है ,
क्यूँ समय का अभाव है ,

Veer Keh Raha

मुखर हुई है चुप्पी सारी,आँसू सारे दहक रहे है दबी वेदना द्रोही होती,अपने सारे बहक रहे है। पीड़ाओं की वेदी में अब,सती सती मत होने जाना सीता तुम भयभीत न होना,नहीं काँपना मत चिल्लाना। दानवदल जब चीर उतारे,आह नही हुंकार लगाना बंशीधर की आस छोड़कर,पांचाली गांडीव उठाना। मानूँगा बलवान भीम है,अर्जुन का भी शौर्य बड़ा है

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मुखर हुई है चुप्पी सारी,आँसू सारे दहक रहे है
दबी वेदना द्रोही होती,अपने सारे बहक रहे है।
पीड़ाओं की वेदी में अब,सती सती मत होने जाना
सीता तुम भयभीत न होना,नहीं काँपना मत चिल्लाना।
दानवदल जब चीर उतारे,आह नही हुंकार लगाना
बंशीधर की आस छोड़कर,पांचाली गांडीव उठाना।

मानूँगा बलवान भीम है,अर्जुन का भी शौर्य बड़ा है
किन्तु सभी की राहें रोकें,धर्मराज का धर्म खड़ा है।
होगा जब अन्याय,अधर्मी मुँह फेरे सब बैठे होंगे
मर्यादा का ढोंग रचाकर,स्वयं पितामह ऐंठे होंगे।
दुःशासन जब केश को खींचे,अबला तुम अगिनी बन जाना
बंशीधर की आस छोड़कर,पांचाली गांडीव उठाना।

द्यूत सभा ने देवी तुमको,महज़ वस्तु भर मान लिया है
तुम पर दांव रचेंगे पांडव,तथ्य शकुनि ने जान लिया है।
भरी सभा में नग्न रहो तुम,दुर्योधन का स्वप्न यही है
धृतराष्ट्री अंधेपन ने इस,चीर हरण को कहा सही है।
जंघा जब ठोके दुर्योधन,स्वयं गदा ले रक्त बहाना
बंशीधर की आस छोड़कर,पांचाली गांडीव उठाना।
-वीर सिंह सिकरवार मुखर हुई है चुप्पी सारी,आँसू सारे दहक रहे है
दबी वेदना द्रोही होती,अपने सारे बहक रहे है।
पीड़ाओं की वेदी में अब,सती सती मत होने जाना
सीता तुम भयभीत न होना,नहीं काँपना मत चिल्लाना।
दानवदल जब चीर उतारे,आह नही हुंकार लगाना
बंशीधर की आस छोड़कर,पांचाली गांडीव उठाना।

मानूँगा बलवान भीम है,अर्जुन का भी शौर्य बड़ा है

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