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BANDHETIYA OFFICIAL
White तुम द्वार,दयार देखो,हम दिल्ली देखते हैं, गदगद की जगह गमजदा गद्दी देखते हैं। ©BANDHETIYA OFFICIAL #गद्दी
Ashok Mangal
बुद्धि तो हरेक के हिस्से में, परवरदिगार देते ही है । परवरिश से वो तराशी जाती है ।। #गद्दी #YourQuoteAndMine Collaborating with Pratibha Maurya
#गद्दी #YourQuoteAndMine Collaborating with Pratibha Maurya
read moreSanjay Saw
#DearZindagi हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी ,पहला चरण कैंची और दूसरा चरण डंडा तीसरा चरण गद्दी........ तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस पापा या चाचा चलाया करते थे तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था। "कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे। और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और "क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है । आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से मरहूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था। हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तोड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब दर्द भी नही होता था,गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए। अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में । मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी! "जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं । इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए ! और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी। और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी । हम लोग की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा ! पहला चरण कैंची दूसरा चरण डंडा तीसरा चरण गद्दी (फिर बादशाहों वाली फीलिंग्स)
mukesh verma
जाति ना पूछो वोटर क़ी( कविता ) -कुमार मुकेश- अनुशीर्ष में पढ़े.. #NojotoQuote "जाति ना पूछों वोटर की" (कविता) चुनावी घमासान से देश हल्कान पड़ा है हर चैराहे पर, क़िसी न क़िसी पार्टी का प्रत्यासी खड़ा है सभी दल राम के सहारे हो चले है नास्तिक नेता अब आस्तिक हो चले है चुनाव में हर नेता सड़क पर होता हैं
"जाति ना पूछों वोटर की" (कविता) चुनावी घमासान से देश हल्कान पड़ा है हर चैराहे पर, क़िसी न क़िसी पार्टी का प्रत्यासी खड़ा है सभी दल राम के सहारे हो चले है नास्तिक नेता अब आस्तिक हो चले है चुनाव में हर नेता सड़क पर होता हैं
read moreRAJ SINGH ✔️
*नाकाम आशिक़* पार्ट २- “निवेदन दिवस” “एक मोटी जीन्स ख़रीद लो विशाल..” (लक्षमण ने अपने जूते का फ़ीता खोलते हुए कहा) “क्यूँ क्या हुआ?” (विशाल ने आँखे मींचते मींचते पूछा!) “अबे वो निधि का भाई दिखा था अभी! हम कोचिंग से निकले और देखे कि सामने ‘लोहे’ की सरिया ख़रीद रहा था!” “भक साले!” (विशाल ने सहमते हुए कहा) “अरे मज़ाक़ कर रहे बे.. अरे एक सरिया नही लिया है। कुन्तल भर ख़रीद है। घर वर बन रहा होगा उसका!”
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