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Lotus banana (Arvind kela)

#dawn

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#भूख से लड़ रही है इक दुनिया, दूसरी लड़ रही है #भूखों से !!! #dawn

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं हार लिखता हूँ।। तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ। मज़ा किसमे रहा कितना बारंबार लिखता हूँ। कोई रोटी से हारा है, कोई गोटी से हारा है। भूखों मर रहा कोई,

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मैं हार लिखता हूँ।।

तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।
मज़ा किसमे रहा कितना बारंबार लिखता हूँ।

कोई रोटी से हारा है,
कोई गोटी से हारा है।
भूखों मर रहा कोई,
द्रौपदी हर रहा कोई।
कहाँ कब धर्म बैठा था,
दूषित ये कर्म बैठा था।
कहाँ किसका रहा वंदन,
तिलक माथे लगा चन्दन।
लिखूं किसकी मैं बातों को,
झुलसते दिन और रातों को।
कहाँ कब आह निकली थी,
मानवता जब ये फिसली थी।
कोई था विद्व कोई ज्ञानी,
भरा आंखों में बस पानी।
हर उस आंख का मैं तो सरोकार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

पूजा मैं करूँ किसकी,
करूँ किसपे पुष्प अर्पण।
मुंडाए सिर अपना मैं,
करूँ बस सत्य का तर्पण।
कभी जो ईश था मेरा,
वही मुझसे रूठा है,
क्यूँ उसने भी नहीं देखी,
भरोसा मेरा टूटा है।
भूखों वो जो मरता था,
था भगवन तब कहाँ सोया।
क्यूँ आगे वो नहीं आया,
क्यूँ अपना हाथ था धोया।
भगवन-दशा को आज मैं स्वीकार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

रोटी या मुहब्बत हो,
एक भूख हैं दोनों।
दोनों की कमी खलती,
सच दो टूक हैं दोनों।
रोटी बिन कहाँ जीवन,
चला किसका कहो कब है।
भरा हो पेट रोटी से,
उसका ही तो ये रब है।
मुहब्बत एक झांसा है,
कहानी भूख की सच्ची।
जो आंखें आर्द्र ना होतीं,
ज़ुबाँ ये मूक ही अच्छी।
प्रेम और भूख की मैं तो टकरार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

चलो कुछ तर्क भी कर लें,
कुछ बातें कहता हूँ।
मुहब्बत तो सही फिर भी,
भूख लिखने से डरता हूँ।
जननी है सफलता की,
जिसे हम हार कहते हैं।
सफल हो कर किया तुमने,
उसे ही प्यार कहते हैं।
जरा तुम हार कर देखो,
मज़ा फिर जीत का कितना।
जीत के बाद जो हो प्रीत,
मज़ा फिर प्रीत का कितना।
होकर आज नत मैं ये तर्क-सार लिखता हूँ।
तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मैं हार लिखता हूँ।।

तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ।
मज़ा किसमे रहा कितना बारंबार लिखता हूँ।

कोई रोटी से हारा है,
कोई गोटी से हारा है।
भूखों मर रहा कोई,

Harshit Singh

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किसान भूखों के लिए भगवान हूं मैं 
 हां " किसान"  हूं मैं
मेहनत और पसीने से सींचा हूं अपने फसलों को
जैसे कोई शायर लिख रहा होगा गजलों का....
कड़ाके की धूप ,कप कपाती ठंड सब सहना पड़ता है
अपने फसलों की रखवाली के लिए रात दिन 
खेतों में रहना पड़ता है
  हम दाने-दाने को मोहताज हो जाते हैं
जब यह मौसम हमसे नाराज हो जाते हैं
भूखों के लिए भगवान हूं मैं 
हां " किसान " हूं मैं

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 2 - भगवान की पूजा एक साधारण कृषक है रामदास। जब शुक्र तारा क्षितिज पर ऊपर उठता है, वह अपने बैलों को खली-भूसा देने उठ पड़ता है। हल यदि सूर्य निकलने से पहले खेत पर न पहुँच जाय तो किसान खेती कर चुका। दोपहर ढल जाने पर वह खेत से घर लौट पाता है। बीच में थोड़े-से भुने जौ या चने और एक लोटा गुड़ का शर्बत - यही उसका जलपान है। जाड़े के दिन सबसे अच्छे होते हैं। उन दिनों जलपान में हरी मटर उबाल कर नमक डाल कर घर से आ जाती है खेतपर और गन्ने का ताजा रस आ जा

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
2 - भगवान की पूजा


एक साधारण कृषक है रामदास। जब शुक्र तारा क्षितिज पर ऊपर उठता है, वह अपने बैलों को खली-भूसा देने उठ पड़ता है। हल यदि सूर्य निकलने से पहले खेत पर न पहुँच जाय तो किसान खेती कर चुका। दोपहर ढल जाने पर वह खेत से घर लौट पाता है। बीच में थोड़े-से भुने जौ या चने और एक लोटा गुड़ का शर्बत - यही उसका जलपान है। जाड़े के दिन सबसे अच्छे होते हैं। उन दिनों जलपान में हरी मटर उबाल कर नमक डाल कर घर से आ जाती है खेतपर और गन्ने का ताजा रस आ जा

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