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prabhashchandra3133
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Prabhash Chandra jha

मीर का शहर और गालिब के गली से हु दिल की दिल्ली और तख्त की जमी से हु

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Prabhash Chandra jha

उठो हिन्द के सैनिक.....मातृभूमि करे पुकार

उठो हिन्द के सैनिक.....मातृभूमि करे पुकार

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Prabhash Chandra jha

जख्म भरकर बढ़ गया हु आगे 
जो कुरेदे गए वो घाव नहीं इतिहास का अनकहा किस्सा है 

भूलने की ख्वाइश किसे होती है
जो रह गया है, जहन में उसे जानने के लिए 
आदमी भूलता है कुछ पाने के लिए


सिलवटो के निशाँ  खोलते  है राज मेरे हमराज के
जिसे छुपाया था  किताबो में  मैंने मोर पंख की तरह
लिखे तो बहुत कुछ मगर कौन पढ़ेगा उसे 
मेरे शब्द दफ़न है डायरी में तबाह खण्डर की तरह

©Prabhash Chandra jha
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Prabhash Chandra jha

भीगी भीगी  सड़के , शाम पूरे  शबाब में है
एक मै बिखरा बिखरा  और तुम्हारी ग़ज़ल  किताब में है
 
झुकी झुकी सी उनकी नज़रे
सजदा करती हिजाब में है
तो कियु न हम भी उनको दखो 
कबसे उनके ख्वाब में है


वो महलों की है रानी .चाल चंचल शोख जवानी
कियुं न लिखें हम उन पर कविता
 हम भी शायर है ख़ानदानी

बोध गया में हो ध्यान
या भागलपुर पुर में गंगा स्नान
यही पर महिलाओ की मधुबनी चित्रकारी
यही पर UPSC के लिए संघर्ष जारी

इतनी कलाओं सें सुसज्जित 
देखो हम बिहार में हैं

©Prabhash Chandra jha #grey
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Prabhash Chandra jha

भीगी भीगी  सड़के , शाम पूरे  शबाब में है
एक मै बिखरा बिखरा  और तुम्हारी ग़ज़ल  किताब में है
 
                       झुकी झुकी सी उनकी नज़रे
                       सजदा करती हिजाब में है
                  तो कियु न हम भी उनको दखो 
                       कबसे उनके ख्वाब में है

वो महलों की है रानी .चाल चंचल शोख जवानी
कियुं न लिखें हम उन पर कविता
 हम भी शायर है ख़ानदानी

                      बोध गया में हो ध्यान
              या भागलपुर पुर में गंगा स्नान
            यही पर महिलाओ की मधुबनी चित्रकारी
           यही पर UPSC के लिए संघर्ष जारी
इतनी कलाओं सें सुसज्जित 
देखो हम बिहार में हैं

©Prabhash Chandra jha
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Prabhash Chandra jha

कुछ ख्वाब सजाये रखा है 
घर की चार दिवारी में
मन को समझाए रखा है
घर की चार दिवारी में

सस्ते महंगे सामानों पर धूल जमी ये कहती है
सब कुछ लुटाये रखा है 
घर की चार दिवारी में

                                         बेटे की शैतानी हो बेटी का भोलापन
                                                माँ की एक कोर से तृप्त हो जाता अन्तर्मन

                घटनाओं का कालचक्र चलता  घर की  चार दिवारी में
एक उम्र संभाले रखा है घर की चार दिवारी में
कुछ ख्वाब सजाये रखा है  
घर की चार दिवारी में

©Prabhash Chandra jha #चार दिवारी   Author Kunal Kanth gudiya Yamini Thakur Dhyaan mira Rakesh Srivastava

#चार दिवारी Author Kunal Kanth gudiya Yamini Thakur Dhyaan mira Rakesh Srivastava #कविता

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Prabhash Chandra jha

32 साल से भुला दी गईं आवाज हु मैं
वादियों में दी गई आहुति
लोकतंत्र पर लगा कलंक का ताज हु मै 

कश्यप का तप , हवन की आग
वेदों का ज्ञान पंडितो के घर का चिराग
इन बुझी हुइ राखो का अंबार हु मैं
डरे हुए समुदाय के डर का शिकार हूं मैं

©Prabhash Chandra jha #KashmiriFiles
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Prabhash Chandra jha

चश्मदीदों के मोहल्ले में घराना है , 
देखा है यहां.. कई कातिलों का आना जाना है
हादसों का जिक्र ना करो तो अच्छा है
हादसों का जिक्र न करो तो अच्छा है
यहां.. रोज ,विरानो में बिकती ज़िंदगियों का फसाना है

©Prabhash Chandra jha #shahadrarapecase
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Prabhash Chandra jha

चेतक पर सवार महाराणा है मुगलों का मृत्यु संदेश लिए
वक्षस्तल विशाल नेत्रों में आग  , दोनो हाथों में भाला लिए
अल्लाह खेर अल्लाह खेर चीख पुकार शत्रुदल में
काल भैरव आन गयो , हल्दीघाटी के रण में

©Prabhash Chandra jha #MaharanPratapJayanti
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Prabhash Chandra jha

कबतक रोक सकता है बादल , चंद्र के प्रकाश को
 कबतक रोक सकती है रात , भोर के प्रभाष को
 पर्वतों को चीरकर निकली सरिता
भयभीत समय में एक अभय अंगार फुटा
मां भारती की जिसने लिखी विजय संहिता

©Prabhash Chandra jha
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Prabhash Chandra jha

कबतक रोक सकता है बादल , चंद्र के प्रकाश को
 कबतक रोक सकती है रात , भोर के प्रभाष को
 पर्वतों को चीरकर निकली सरिता

भयभीत समय में एक अभय अंगार फुटा
तलवारों की चमक से
मां भारती की जिसने लिखी विजय संहिता

ले इंद्र का वज्र  ऐरावत पर सवार होकर
छेड़कर समर हाथ में स्वराज लेकर
हिंदवी राज्य का सरदार  हूँ मै 
महाकाल का अवतार हूँ मै

सिंह की दहाड़ से डोले दिल्ली का सिंहासन
लेकर नाम मुगलों के हृदय में होता स्पंदन
इसी माटी की धरा का लाल हुं मै
लाखो वर्षो का  इतिहास हूं मैं

©Prabhash Chandra jha #bharat
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