#मौका_छूट_गया
इस साल और अधिक अहित हुआ,
सही होते हुए भी ग़लत साबित हुआ
और बुरी तरह टूट गया।
कल मातम मनाते-मनाते मौका छूट गया।।
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यह देख दोबारा कविता करीब आई,
अनुभूत करता रहा जिसकी गहराई,
#पतंगों_के_प्रति
आज कविता
जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है
पर सुंदर नहीं लग रही है
न नहाने-खाने के कारण
स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण
चिढ भी रही है वह।