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Islam Mirza Beg
शायरे फितरत हूँ मैं, जब ज़िक्र फरमाता हूँ मैं
रूह बनकर ज़र्रे ज़र्रे में , समा जाता हूँ मैं
एक दिल है और तूफाने हवादिस ऐ 'जिगर'
एक शीशा है के हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
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