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adityasarswati1326
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Aditya Sarswati

Author & Educator

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Aditya Sarswati

ये वाकया कुछ दिन पहले का है |
पेशे से मै एक शिक्षक हूँ | होली के उपलक्ष्य में हमारा विद्यालय चार दिनों के लिए बंद हुआ | अगर बारीकी से देखा जाए तो एक शिक्षक की ज़िन्दगी में वास्तविक अवकास उतना हीं दुर्लभ हैं जितना की चाँदनी रात में सितारे |
काफी हिम्मत कसने के बाद मैंने ये ठान लिया की इस अवकास में सिर्फ और सिर्फ आराम होगा और कुछ भी नहीं | सुबह से शाम तक की दिनचर्या मैंने बनायी | शिक्षक जो ठहरा, आराम के लिए भी एक योजना बनाने की ज़रूररत पड़ती है | और हाँ मैं एकलौता ऐसा बन्दा नहीं हूँ | कुछ शिक्षक तो ऐसे भी है की बगैर पाठ योजना के वो नहाने तक नही जाते | योजना के प्रथम चरण में आज पहले दिन मै घर से बाहर नहीं निकलने वाला था. इसके तहत मुझे बिस्तर छोड़े दो घंटे हो गए थे और मै यूँ हीं घर में इधर से उधर उठ-बैठ रहा था | मेरी पत्नी काफी देर से मेरा निरीक्षण कर रही थी | वैसे ये निरीक्षण हर वक़्त होते रहता है परन्तु आज वो कुछ विस्मय की स्थिति में थी और महिलाओं का विस्मय पुरुषों के लिए खतरे की घंटी होती है ये हर शादी शुदा आदमी भली भांति समझता है | अंततः वो मेरे करीब आयी | सिर पर हाथ रक्खा और पूछा- “सब ठीक है न? आज आप यही घर में घूम रहे है , आसमान सर पर नहीं लिए है | पागलों की तरह बडबडा भी नहीं रहे है | आज कोई कागज़ खोया नही है ना ही गूगल पर कुछ खोज-बीन चल रही है | सबसे बड़ी बात स्कूल वाले ग्रुप में कोई मेसेज भी नहीं पढ़ रहे है | नौकरी है भी या चली गयी ?”
आज उसके प्रश्नों से समझ में आया की सब मुझपे इतना तरस क्यों खाते थे | प्राइवेट नौकरी में आदमी घर में रहता है पर घर का नहीं रह पता – ये बात मैंने सुनी थी पर आज मै समझ भी गया | पर एक सच ये भी तो है कि जहाँ हमारी चुनी हुई सरकार हमें सौतेला समझती है वहां कोई तो है जो हमारे घरों में रोटी का इन्तेजाम कर दे रहा है | पर ये सब बाते कौन समझे और किसे समझाया जाये- दिल हल्का करके मैंने सोचा छुट्टी का मज़ा लिया जाये | मैंने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए कहा- “ देख यूँ बावली मत बन, आज अपने हाथों का बढ़िया गरमा गरम नाश्ता करा दो | परंपरागत तरीके से कुछ मध्यम कर्कश ध्वनि में बुदबुदाते हुए वह निकल गयी | एक घंटा भी नहीं बीता और रसोई से आवाज़ आई- “ बैठ जाईये, नाश्ता तैयार है | गरम गरम पूरी और छोले इतने स्वादिष्ठ लग रहे थे कि मैंने पाचनतंत्र की सारी सीमा रेखाएं लांघ दी | अंगुलियाँ चाटते हुए अचानक से मेरा ध्यान गया और मैंने पाया कि पत्नी साहिबा कमर पर हाथ रखे मुझे एक टक घूरे जा रही थी और अंततः बोल ही दिया- बस भी करो अब, आपके दो बच्चे भी हैं, उनके लिए भी कुछ बच जाये तो बेचारे खा लेंगे | जैसा तुम कहो मेरी जान ऐसा कहते हुए मैंने हाथ धोया | टीवी का रिमोट खोजने के लिए मै वहाँ से दुसरे हॉल में चला गया दोपहर, शाम, रात और अभी अगले तीन दिन के बाकी किस्से अगले भाग में |

©Aditya Sarswati #teacher'slife
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Aditya Sarswati

हसरतें और मशक़्क़तें 
हममंज़िल ना हो पाए ।
कुछ ऐसी रही दास्ताँ,
हमारे इश्क़ की ।

©Aditya Sarswati
  #broken heart
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Aditya Sarswati

बे-इंतेहा बे-अदब ख्वाहिशों से 
हमारा पहले से हीं,
एक गहरा नाता है।

हुस्न गर खुद हीं बेपरवाह हो,
तो कम से कम,
आंखो से छेड़ने में, क्या जाता है।

©Aditya Sarswati
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Aditya Sarswati

She rescued me from all the 
problems- she loved me so much.
Then one day I married her.

©Aditya Sarswati #smoking
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Aditya Sarswati

She used to rescue me from all the problems because She loved me very much.
Then, one day I married her.

©Aditya Sarswati
  #Anhoni
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Aditya Sarswati

इस क़दर फ़िदा हूं तुम पर,
कि हर शख्स में तेरा वजूद दिखता है।
वजह ये, किसी और को चूमने को मजबूर कर दे,
तो खा-म-खा मुझे गुनहगार ना समझना।

©Aditya Sarswati #UskiAankhein
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Aditya Sarswati

किसी भी क्षेत्र में वृद्धि एक नियम के तहत होती है। जिस चीज़ की मदद से वृद्धि होती है, उसके नही होने की परिस्थिति में पतन शुरू हो जाता है। आगे बढ़ने का यह एक स्पष्ट संविधान है। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो पौधे प्रकाश के कारण बढ़ते हैं। अगर वातावरण से प्रकाश विलुप्त हो जाए तो पौधे मर जायेंगे, ऐसा विज्ञान भी कहता है। यही नियम हमारे दैनिक जीवन में भी लागू होता है। जो शारीरिक ताकत के दाम पर आगे जाते है, उसके खतम होते ही उनका खात्मा हो जाता है। जो ऊंची पहुंच या रसूख के कारण आगे जाते है, जिस दिन रसूख खतम होता है उस दिन से उन्हें कोई नहीं पूछता। पैसे के दम से आगे बढ़ने वाले अगर कभी पैसे की कमी के शिकार हुवे तो उनकी कहानी वही समाप्त हो जाती है। जिस्म की नुमाइश से आगे बढ़ने वाले की जवानी खत्म होते ही दर दर भटकना पड़ता है।  याद रहे हम जिस चीज़ से दूसरे को आकर्षित करते हैं, उस चीज़ के घटने या नही होने पर हमारी पुछ वहीं खत्म हो जाती है। इसीलिए बुद्धिमान लोग अपने बढ़ने का जरिया सोच समझ कर चुनते है। आज की पीढ़ी को इस बात का बखूबी ध्यान रखना होगा। वर्ना..... लंका कल भी जली थी, आज भी जल रही है और कल भी जलेगी।

©Aditya Sarswati
  #Nature
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Aditya Sarswati

बड़ी गलतफहमी में रहती है वो,
कि सब उसी के आशिक है l
अरे जालिम, ये समझ,
नमाज़ी सिर्फ हम है l
बाकी सब काफ़िर हैं।

©Aditya Sarswati #jaa_maaf_kiya_tujhe
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Aditya Sarswati

नूर-ए-अक्स तेरा,
 बा-कमाल है। 
हया भी खूब है ,
और वफा भी खूब है।

©Aditya Sarswati #chehara
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Aditya Sarswati

फिक्र-ए-यार करते-करते,
सुकूं दिल के, ठिकाने लग गए ।
गैरों से मिलने में ज़रा भी देर नहीं करती वो,
और हमसे मिले, ज़माने हो गए ।

उन्ही की ख्वाहिशें मुक्कमल करने को,
ज़रा से दूर क्या हुवे ।
मुहल्ले के सारे रकीब, 
उनके सामने हो गए ।

मुनासिब सब था,
अगर पहल, उनकी ना होती ।
नए फिक्रमंद को घर बुला लिया,
हम, पुराने अफसाने हो गए ।

©Aditya Sarswati #धोखा_और_प्यार
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