दर्द तुम क़ामिल तो नही पर मुक़म्मल करती हो मुझे,
जैसे परछाई मेरे संग चला करती हो,
फ़र्क़ इतना सा है परछाई रोशनी में है साथ,
तुम अंधेरों में भी तो साथ मेरे चलती हो!
यूँ नही के मेरे संग राह में कांटे ही नही,
तुम इन काँटो की भी परवाह कहाँ करती हो!
गर मुहब्बत है दवा तो फ़क़त तुम ही हो तबीब,
मेरे हमदम मेरे हर दर्द का शिक़वा है अजीब,