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ajaynswami5211
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ajaynswami

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ajaynswami

White मेरे मन में बैठी एक छोटी सी अभिलाषा है,
तेरा एक साथ हो यही जीवन की आशा है।

तुम गंगा यमुना सी पवित्र और चंचल हो तुम,
मेरे पवित्र प्रेम की यही छोटी सी परिभाषा है।

कागज़ पर उतारे हैं अपने सपने चटक स्याही से,
तुझे पढ़े सब मेरे छंदों में मेरे छंदों की यही भाषा है।

©ajaynswami #hindi_diwas
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ajaynswami

चाँदनी के ख़ातिर ये चांद आज कुछ बड़ा है,
तारों के बीच अकेला वो मंद हांस से खड़ा है।

पूर्णिमा का साथ भी चंद्रमा को पूर्ण मिला था,
उसे पाने के लिए वो गर्दिशों से बहुत लड़ा है।

बूँदों की भी ख्वाहिश नियाज़ बारिश बनने थी,
दहलीज पर कदम रख तुमने खुशियो से जोड़ा है।

वापस लौट पक्षियों का शजर पर ही होता बसेरा है,
जैसे चाँदनी ने इस रात छेड़ा हो मधुर राग सुहाना है।

©ajaynswami
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ajaynswami

चाँदनी के ख़ातिर ये चांद आज कुछ बड़ा है,
तारों के बीच अकेला वो मंद हांस से खड़ा है।

पूर्णिमा का साथ भी चंद्रमा को पूर्ण मिला था,
उसे पाने के लिए वो गर्दिशों से बहुत लड़ा है।

बूँदों की भी ख्वाहिश नियाज़ बारिश बनने थी,
दहलीज पर कदम रख तुमने खुशियो से जोड़ा है।

वापस लौट पक्षियों का शजर पर ही होता बसेरा है,
जैसे चाँदनी ने इस रात छेड़ा हो मधुर राग सुहाना है।

©ajaynswami
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ajaynswami

मै नारी हूं तो इसी लिए तो तुम्हारा दर्पण भी हूं,
हां मैं अवला नारी हूं इसी लिए शायद समर्पण हूं।












भीड़ में तुम अस्मिता को ढेस पहुंचाते हो याद रखो,
अस्मिता से खेलोगे तो मैं ही सिर्फ़ तुम्हारा तर्पण हूं।

©ajaynswami
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ajaynswami

ये लाल रंग बड़ी मुद्दतो के 
बाद मेरे हिस्से में आया था,
तेरे लिए सिंदूर का फ़र्ज़ अभी 
तक बड़ी शिद्दत से निभाया था।

©ajaynswami
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ajaynswami

मुझे सिर्फ़ उससे यही एक ही मलाला रहा,
इश्क क्यों हुआ था उसे यही सवाल रहा।

जो हक जताकर नाराज़ हुआ करते थे,
अब वो सिर्फ़ बीता हुआ एक ख्याल रहा।

©ajaynswami
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ajaynswami

मेरा मुर्शिद ऐसा कि महफिल में  सारी ख्वाहिशे हर बार मरोड़ देता,
मोहतरमाओ की तारीफ़ खाकर मुझे चंद तालियों के सहारे छोड़ देता।

माना कि मुर्शीद के बाकी सारे शागिर्द महफिल में चार चांद लगा देते हैं,
तब्बजो दी होती इस-ना-चीज़ को भी तो उफनती दरिया का रुख मोड़ देता।

अरे मै जाबांज इतना तो नही कि पत्थर मार कर चांद तोड़ देता,
मुर्शिद को सुना रात तो लगा हाथ में पत्थर होता तो सर फोड़ देता।

©ajaynswami
  #InspireThroughWriting
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ajaynswami

मेरा मुर्शिद ऐसा कि महफिल में  सारी ख्वाहिशे हर बार मरोड़ देता,
मोहतरमाओ की तारीफ़ खाकर मुझे चंद तालियों के सहारे छोड़ देता।

माना कि मुर्शीद के बाकी सारे शागिर्द महफिल में चार चांद लगा देते हैं,
तब्बजो दी होती इस-ना-चीज़ को भी तो उफनती दरिया का रुख मोड़ देता।

अरे मै जाबांज इतना तो नही कि पत्थर मार कर चांद तोड़ देता,
मुर्शिद को सुना रात तो लगा हाथ में पत्थर होता तो सर फोड़ देता।

©ajaynswami #InspireThroughWriting
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ajaynswami

मंथरा मंडली और दुशाशन 
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काना फूंसी से तंग आकर उसे तुमने नाम मंथरा दिया था, 
तुम्हारे चीरहरण के आम सभा में दुशासन का साथ दिया था।

वो मंथरा जैसी बातों में फंसा गई चौसर के खेल में बाजी लगा गई,
इस जीत के जाम में दुशासन का साथ मंथरा ने फिर खूब दिया था।

वो मंथरा की सत्ता की लाचारी थी ये कलयुग की नारी की व्यापारी है, 
देख काम पूरा हुआ दुशासन के अट्टहास में मंथरा ने ढोल बजा दिया था।

हे कलयुग की खलनायिका क्या तुम्हारे बाद किसी बेटी ने जन्म लिया था, 
सखा तुम्हारा आंखों से अवला को गर्भ-धारण वाली फतियां कस दिया था।

©ajaynswami

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ajaynswami

White खुद के घाव को और गहरा करते हैं,
उसके रंजो-गम को सुनहरा करते हैं।

वो खुश रहे इस लिए उसकी यादों पर,
ख़ुद पर सलाखों का कड़ा पहरा करते हैं।

©ajaynswami #SAD

SAD

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