स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी !* ज्ञान की तलाश क्या सिर्फ बुद्ध को थी ? क्या तुम नहीं पाना चाहतीं वह ज्ञान ? किन्तु जा पाओगी क्या अपने पति परमेश्वर और नवजात शिशु को छोड़कर ? तुम तो उनपर जान लुटाओगी, उनके लिये अपने भविष्य को दाँव पर लगाओगी, उनके होठों की एक मुस्कुराहट के लिए अपनी सारी खुशियों की बलि चढ़ाओगी ! स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी ! क्या राम बन पाओगी ? क्या कर पाओगी अपने पति का परित्याग, उस गलती के लिए, जो उसने की ही नहीं ? ले पाओगी उसकी अग्निपरीक्षा उसके नाज़ायज़ सम्बधों के लिए भी ? क्षमा कर दोगी उसकी गलतियों के लिए, हज़ार गम पीकर भी मुस्काओगी ! स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी ! क्या कृष्ण बन पाओगी ? जोड़ पाओगी अपना नाम किसी परपुरुष के साथ, जैसे, कृष्ण संग राधा ? अगर तुम्हारा नाम जुड़ा तो तुम चरित्रहीन कहलाओगी, तुम मुस्कुराकर बात भी कर लोगी, तो भी कलंकिनी-कुलटा कहलाओगी ! स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी ! क्या युधिष्ठिर बन पाओगी ? जुए में पति को हार जाओगी ? तुम तो उसके सम्मान की खातिर दुर्गा-चंडी हो जाओगी, खुद को कुर्बान कर जाओगी, मौत भी आये, तो उसके समक्ष अभय होकर खड़ी हो जाओगी ! स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी ! रहने दो तुम यह सब, क्योंकि तुम सबल हो, तुम सरल हो, तुम सहज हो, तुम निश्चल हो, तुम निर्मल हो, तुम शक्ति हो, तुम जीवन हो, तुम प्रेम ही प्रेम हो, ईश्वर की अद्भुत सुंदरतम कृति हो तुम ! स्त्री हो तुम ! ••••
Ritika Jaiswal Rj
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