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soniyadav1064
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Ganesh Dixit

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Ganesh Dixit

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Ganesh Dixit

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Ganesh Dixit

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Ganesh Dixit

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Ganesh Dixit

Yaarana
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Ganesh Dixit

Bachman ke din

Bachman ke din #ज़िन्दगी

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Ganesh Dixit

एक कहानी है जो आज एकदम फिट है,एक जंगल था उसमे राजा सेर था वो रोज एक जीव मार कर खाता था,सभी जीव एक दिन मिटिंग किये तो बिचार किया राजा बदल देते हैं और बन्दर को राजा चुना गया,अगले दिन से सेर 10,10को मारने लगा और जीव को मरता देख बन्दर इस डाल से उस डाल कूदता रहा फिर सबने मिलकर बिचार किया की राजा से सवाल करो इस तरह तो जंगल ही साफ हो जायेगा,तो पंचायत मे पुछा राजा हमारे लिये आप क्या कर रहे हैं हम मारे जा रहे हैं तो बन्दर राजा बोला मेरे मेहनत मे कोई कमी नहीं है 18घन्टे मेहनत किया,

©Ganesh Dixit
  #girl
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Ganesh Dixit

🚩
              *आज का संदेश*

          मनुष्य एवं पशु में एक ही प्रधान अंतर है और वो है विवेक। देखा जाये तो विवेक ही व्यक्ति को पशु बनने से रोकता है। विवेकवान व्यक्ति ही जीवन की प्रत्येक परिस्थिति, वस्तु, व्यक्ति, अवस्था इन सबको अपने अनुकूल कर सकता है।

           जिस प्रकार बाढ़ जब आती है तो वह सब कुछ बहा ले जाती है। लेकिन एक कुशल तैराक अपनी तैरने की कला से बाढ़ को भी मात देकर स्वयं तो बचता ही है अपितु कई औरों के जीवन को भी बचाने में सहायक होता है। 

             तुम संसार की भीड़ का हिस्सा मत बनो। परिस्थिति और अभावों का रोना तो सब रो रहे हैं। तुम कुछ अलग करो, अच्छा करो, प्रसन्न होकर करो। विवेक इसीलिए तो है, तुम गिरने से बच सको। ये जरूर ध्यान रखना कि विवेकयुक्त काम करना ही मनुष्यता है अथवा जो विवेक पूर्ण कार्य करे वही मनुष्य है।
🪷

©Ganesh Dixit
  #Likho
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Ganesh Dixit

गटर में लाख गंदगी हो, कितनी भी बदबू हो, उसमें भी जीवन के लिए बहुत कुछ मनमोहक है। इसे एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।

एक ज्ञानी महाशय थे। पारंपरिक धर्मात्मा टाइप। उन्हें भूत, भविष्य तक का ज्ञान था। जब उनका अंतिम समय आया, तो उन्होंने ध्यान लगाकर यह समझना चाहा, कि उनके जैसा धर्मात्मा, मरने के बाद स्वर्ग में कौन कौन सी सुविधाएं भोगेगा?

ध्यान लगाया और उन्हें पता चल गया, कि उनके साथ क्या होने वाला है? महाशय को पता चल गया, कि मरने के कुछ दिन बाद वह अपने ही घर से निकलने वाली गंदी नाली के कीड़े बनने वाले हैं। उन्हें यह भी पता चल गया, कि यदि उस रूप को प्राप्त करने के बाद कोई उन्हें मार डाले, तो उन्हें मुक्ति मिल जाएगी।

भारी मन से उन्होंने अपने बेटों को बुलाया। पहले गद्दार भगवान की मां बहन की। फिर बेटों को सारा वृत्तांत सुनाया और आदेश दिया, कि उनकी मौत के बाद उनके बेटे उन्हें कीड़े के रूप में खोज कर मार डालें, जिससे उन्हें मुक्ति मिल जाए। बेटों ने पूछा, कि वो उन्हें ढेर सारे कीड़ों में पहचानेंगे कैसे? तब उन्होंने ध्यान के सहारे अपनी पहचान भी बता दी। बोले नाली में बहुत सारे बुलकने वाले कीड़े होंगे। उनमें से एक कीड़े की पीठ पर लाल धारी होगी। वह मैं रहूंगा। बस तुम मुझे देखते ही मार डालना।

बेटों ने पिता की मुक्ति के लिए यह पाप करना स्वीकार कर लिया। पिताजी मर गए, तो उनकी बताई अवधि बीत जाने पर बेटों ने कीड़ा खोजना शुरू कर दिया। दो तीन दिन बाद उन्हें लाल धारी वाला कीड़ा दिख गया। बेटों ने उन्हें हाथ जोड़कर हत्या करने की अनुमति मांगी। जैसे ही कीड़े को मसलना चाहा, कीड़ा जोर से चिल्लाया, अरे बेटों ! मुझे मारो मत।

बच्चे हैरान ! खुद ही तो कहे थे, मार देना। अब क्या हुआ? मुक्ति नहीं चाहिए क्या? कीड़े ने कहा, बेटा मुझे अब मुक्ति नहीं चाहिए। मनुष्य योनि में मैं इस अलौकिक सुख से वंचित था। यहां बहुत मज़े में हूं। कोई रोक टोक नहीं। स्वच्छंदता और उन्मुक्तता के अलावा यहां कुछ भी नहीं है। खाने पीने की कोई कमी नहीं। एक से एक लजीज़ व्यंजन का स्वाद यहां मिलता है। इस मजे के आगे स्वर्ग और मुक्ति की कामना कोई मूर्ख ही कर सकता है।

बच्चों ने ठंडी आह भरकर बस इतना ही कहा... बन गए बापू, नाली के कीड़े ! इस कहानी के माध्यम से जो संदेश देना चाहता था, उसकी व्याख्या की ज़रूरत तो नहीं होगी। सब मित्रगण अपने हिसाब से समझ लें। इत्यलम्।

©Ganesh Dixit
  #Likho
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Ganesh Dixit

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?? 

यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

भटकते-भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।

वह जोर से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।

ये उल्लू चिल्ला रहा है। 

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??

ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।

हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद! 

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा 

पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।

हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??

अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!

उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये। 

कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। 

पंचलोग भी आ गये!

बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।

हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। 

इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए! 

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जाँच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया। 

उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!

हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ?? 

पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी! 

लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है! 

मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।

यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!

शायद इतने सालों बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता न देखते हुए, हमेशा ये हमारी जाति का है. ये हमारी पार्टी का है के आधार पर अपना  फैसला सुनाते हैं, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!

कोई त्रुटि हो तो क्षमा प्रार्थी हूं,,,

जय मां भगवती,
🙏🙏मेरे परम पूज्य बडे भाई साहब की लेखनी

©Ganesh Dixit
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