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कुछ भी तो नही हूं

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White आखिर मन क्यों नहीं थकता 
एक ही गलती को बार बार दुहराकर भी
अपने हिस्से एक ही दुख को बार बार समेट कर भी
मन क्यों नहीं थकता मेरा 
बार बार उस घर की तरफ जाने से 
जहां मेरे मुंह पे ही दरवाजा बंद कर लिया गया 
और मेरे पैर की छोटी उंगली दब कर लहूलुहान होती रही

मुझे नहीं पता पर बहुत बार चलते चलते 
थक कर चूर चूर हुआ मन और तन क्यों नहीं हारता मेरा
बार बार मुंह की खाने के बाद भी 
आखिर क्या है जो चलते रहने को मजबूर करती है
नहीं पता कब तक चलना है मुझे
पैरों के छाले जरा सा ठीक क्या होते कि 
जिंदगी फिर आगे चलने को धकेल देती है
और चलना शुरू हो जाता है मेरा

अब लगता है रूक जाना चाहिए मुझे 
पर फिर सोचती हूं रूक कर भी कहां जाऊं मैं
मेरा तो कोई ठिकाना नहीं 
मेरे लिए कोई प्रतिक्षारत नहीं 
इसलिए चलना ही अंतिम सत्य और विकल्प है मेरा 
जब तक कि मेरी सांसे स्वयं थक नहीं जाती

©रुचि
  #Yoga
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रुचि

रोने को दुख कम नहीं थे मेरे पास
पर तुम्हारी गोद में सिर रख कर 
रोने से वो दुख आधे होते गए

तुम ने हमेशा कहा मैं हूं और रहूंगा 
तुम्हारे कहने भर से 
मैं तुम्हारा साथ अनुभव करने लगती

कभी अकेले होने ही नहीं दिया तुमने मुझे
हमेशा छोटी बच्ची सा
लगाए रखा अपनी छाती से

पुरुष के हृदय में भी वात्सल्य की
गंगा बहा करती है 
ये तुम्हारे हृदय के स्पंदन ने ही बताया मुझे

कोई शिकायत नहीं की तुमने मुझसे
जब जैसे मिली जितना मिली 
सहर्ष स्वीकार लिया तुमने

आँखें भिगोती है मेरी 
तुम्हारा ये कहना कि 
सुन हफ्ते में एक बार हाल-चाल दे दिया कर
फिक्र लगी रहती है तुम्हारी....
 
तुम्हारे स्नेह को शब्दों में बांधना 
बहुत मुश्किल है मेरे लिए
क्योंकि तुम्हारे अपरिमित स्नेह के आगे
ये शब्द बहुत बौने से हो जाते हैं

©रुचि
  #Affection
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रुचि

वो बात जो बड़ी आसानी से
पहुँचनी चाहिए थी तुम तक
उसे तुम तक पहुँचने में
पार करना पड़ा मीलों का फासला
लहूलुहान होना पड़ा शब्द-शब्द को
क्षत-विक्षत होता रहा उनका वजूद
खो गए उनके अर्थ, जहां-तहां बिखर कर
और दम तोड़ गईं उनकी संवेदनाएं

तुम चाहते तो सुन सकते थे न
हाँ वो बस सुने जाने के लिए थे व्याकुल
भले ना समझते पर
सुनकर उनको मरने से तो बचा सकते थे न
जानते हो तुम्हें ढूँढते-ढूँढते
बेआबरू भी हुए वो
इस दर्द की भरपाई
क्या कभी कर सकोगे तुम
नहीं न

जाने कितना सफर करना पड़ा उन्हें
बस इस इंतजार में
कि तुम सुन पाओ कभी उनको
अब जब एक लंबा समय गुजरा
और हम मिले भी तो
तुमसे कहने को कुछ न बचेगा मेरे पास
न मेरे शब्द ही और न मेरा मौन ही

©रुचि
  #agni
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