कभी मुख से निकली, कभी स्याही से लिखी, किसी जुड़े हाथो से पढ़ी, कभी खुले हाथ में बंधी, किसी की आरज़ू, किसी की चाहत से हुआ सृजन मेरा, नरसिंह की करताल हूं, मीर का एकतर, आत्मा की पुकार हूं में खुदा की प्यारी बंदगी। न में फकीर हूं, न हु में शराबी प्यासा जाम का, रहता में संसार मे, सेवक सदगुरू और श्याम का। - बंदगी
Tirth Soni "Bandgi"
Tirth Soni "Bandgi"
Tirth Soni "Bandgi"
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Tirth Soni "Bandgi"
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