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rahulagarwalroy2049
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Rahul Agarwal (Roy)

J4U

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Rahul Agarwal (Roy)

#67789
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Rahul Agarwal (Roy)

# struggle

# struggle #nojotovideo

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Rahul Agarwal (Roy)

तेरा वो बूँद-बूँद कर बरसना,
और फिर मुझमें गहरा समां जाना।
अपनी जुल्फ को खोलना,
फिर मुझ पर घटाओं सा छा जाना।
मैं बेचैन हो उठता हूँ,
जब याद आता है, वो गुजरा जमाना। !१!

वो बिजली की कड़क सा 
तेरा सख्त लहज़ा,
फिर मंद हवा के जैसा,
तेरा मुझ पर मुस्कराना।
मैं बेचैन हो उठता हूँ,
जब याद आता है, वो गुजरा जमाना। !२!

कोयल की कूक की तरह,
वो तेरा मुझे देख कर गाना गाना।
तो कभी तेज पानी के बहाव सा,
अपनी ही बातों में फ़साना।
मैं बेचैन हो उठता हूँ,
जब याद आता है, वो गुजरा जमाना। !३!

किसी मदमस्त बादलों के भांति,
तेरा हर बार मुझसे टकराना।
तो कभी तेज हवा के झोंके में,
खुशबू सा मुझमें महक उठना।
मैं बेचैन हो उठता हूँ,
जब याद आता है, वो गुजरा जमाना। !४!
© राहुल अग्रवाल (रॉय)
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Rahul Agarwal (Roy)

नीर सी थी जिंदगी मेरी,
चलती रही संवरती रही।
कभी भटकी, कभी राह बदली
हर बार अपनी धुन में चली।
व्यथित हुई, द्रवित हुई
पर चट्टानों से खूब लड़ी।
कदम-कदम हर कदम से मिली
उससे उसी के रंग में मिली।
कीमती नहीं पर बेशकीमती थी
हर अपने की जरूरत थी।
हाँ यह मेरी जिंदगी थी
जो बहते नीर सी चली।
जो बहते नीर सी चली।।

© राहुल अग्रवाल (रॉय)
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Rahul Agarwal (Roy)

Zindagi

Zindagi #poem

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Rahul Agarwal (Roy)

#poem

poem

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Rahul Agarwal (Roy)

#जिंदगी
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Rahul Agarwal (Roy)

#भूल थी तुम मेरी
पर अच्छी थी।

#भूल थी तुम मेरी पर अच्छी थी।

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Rahul Agarwal (Roy)

मन की पीड़ा को शब्दों में सजाया है
अधूरी हकीकत को पूरा दिखाया है
बात यह नहीं कि कैसे बतलाया जाये
मकसद यह है कि यथार्थ कैसे दिखाया जाये

पता नहीं क्यों, इसमें भी आनंद आने लगा
पन्ने पलटते-पलटते चेहरा मुस्कराने लगा
कपोल में कल्पनाओं का जन्म होने लगा
समय गुजरते नया व्यक्तित्व बनने लगा

नए आयाम बने पर हकीकत पीछे छूट गयी
सशक्त होते हुए भी अबला टूट गयी
कागजों की दुनिया में जगह मिलने लगी
पर अफ़सोस की हकीकत किस्सा बन रह गयी
© राहुल अग्रवाल (रॉय) #अबला
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Rahul Agarwal (Roy)

आहिस्ता-आहिस्ता ही सही पर 
सीखना शुरू तो किया,
डूबते-डूबते ही सही पर 
तैरना शुरू तो किया:
मंजिल तो मिलनी ही थी 
गर जो रास्ते पर चलना शुरू किया,
पर बात तो मुकाम की थी 
जिसके लिए यह सब कुछ किया।
किसी को मिला, तो किसी से रूठ गया:
रहा तो कहा, भाग्य ने किया।
अजीब था दुनिया का खेल भी,
जो मिला तो कहा मेहनत किया।
कब तक किस-किस को दोषी ठहराता।
दूसरों के बाजुओं पर ध्वजा फहराता।
वक्त वह भी आया, जब खुद में झांका।
पहले पहल खुद को आंका,
पता लग गया कि दोषी कौन था।
और समझ गया कि भाग्य मैं ही था।
© राहुल अग्रवाल(रॉय) #भाग्य तो मैं ही था।

#भाग्य तो मैं ही था।

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