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क्यूँ डरता है क्यूँ खुद को अकेला समझता है देख भ


क्यूँ डरता है 
क्यूँ खुद को अकेला समझता है 
देख भीतर ये कारवाँ तेरे पीछे-पीछे आँख मूँदे चलता है 
पहचाना इन्हें?
कुछ नन्हे सपने हैं 
कुछ बचपने है 
कुछ आशाएं कुछ उम्मीदें हैं 
कुछ जोश की छलांगे हैं 
कुछ शांत सी शामें हैं 
कुछ तकिये को भिगोते आँसू हैं 
कुछ डांट है कुछ फटकार है 
थोड़ा माँ का प्यार है और बाबा का दुलार है 
और तुझे अभी भी लगता है तू अकेला है 
सच में तू  भी  न कमाल है!

©Manuja Misra
  #justsaying