अख़बार सच और झूठ का मिश्रित दरबार हूं मैं सत्ता के गलियारों से निकला अखबार हूं मैं कभी मकसद था मेरा सच्चाई को दिखाना मगर आज चंद रूपयों का कारोबार हूं मैं ख्वाहिश है मेरी भी की खबरें छपे मुझमें लेकिन आजकल विज्ञापनों का बाजार हूं मैं सच्चाई तो छप जायेगी पहले पन्ने पर मेरे लेकिन क्या करुं "अनूप "? बस लाचार हूं मैं कीमत बढ़ी है मगर इज्जत घटी है मेरी अपने इस कलंक पर शर्मिन्दा बार-बार हूं मैं ©Anoop Kumar Mayank Anoop kumar mayank's poetry 😊❤️💫 #anoopkumarmayank #IndianNewspaperDay