एक कलम की देशभक्ति यूं तो लिखती हूं मैं बहुत कविताएं, पर जब देश भक्ति पर पर लिखती हूं मैं, लिखने से पहले ही टूट जाती हू अंदर से में, अगर लिख भी दूं मैं टूटी कलम से, तो वह पन्ने फट जाते हैं, जिस पर लिखना चाहती हूं मैं, अपने देश के उन सपूतों की गाथा, कहती हूं मैं अपने लिखने वाले से, मुझ में अब बस रक्त भरा है, कैसे कहूं मैं उस बेटी पत्नी मां की व्यथा, जो अपने वीर को तिरंगे में लिपटे देखेगी, उस आंसू को कैसे लिखूं मैं, जो स्याही थी वह बन गए लाल रक्त, अब तो बहुत खून बहा मेरे देश का, अब मैं फिर से स्याही बनना चाहती हूं, अब बंद करो यह नफरत जो खून बहाती है, जो कहते हैं कि इससे जन्नत मिलती है, कोई जाकर समझाओ उनको, "जन्नत तो मानवता में बसती है" #एककलमकीदेशभक्ति #Desh_ke_liye #independance day