सितारोँ की जमीं पर जब कोई कंकड़ चुन रहा होता है, पत्थर के सिरहाने पर नन्हीं आँखों में कोई ख्वाब बुन रहा होता है। उन्होंने कहा कि जूते फटे पहनकर वो आसमान पर चढ़े थे, किस्सा मैं सपनों की ज़िद का क्या कहूँ, नंगे पैर जो चाँद तक चले थे। #सितारोँ की जमीं पर जब कोई कंकड़ चुन रहा होता है, पत्थर के सिरहाने पर नन्हीं आँखों में कोई ख्वाब बुन रहा होता है। उन्होंने कहा कि जूते फटे पहनकर वो आसमान पर चढ़े थे, किस्सा मैं सपनों की ज़िद का क्या कहूँ, नंगे पैर जो चाँद तक चले थे। #जूते फटे पहनकर वो आसमान पर चढ़े थे(पंक्ति, मनोज मुंतशिर जी की हैं)