#5LinePoetry भोर आई है अब, जग गया है जहां, लोग चलने लगे, अब है जीना यहाँ। गाने पंछी लगे, मन मगन हो रहा, नवीन कलियों पे, भँवरा है मडरा रहा। फूल टूटेगा डाली से, बलिदान होगा, देव,दुल्हन,या शव पर ये,फिर से चढ़ेगा। शोर नदियों में है, हैं लहरे इतरा रही, प्यास तन मन की,सबकी बुझेगी यही। पेड़ पौधों में भी, जान अब आ गयी, नया भोजन बनेगा, है रोशनी अब नयी। पूजा अर्चना की बेला, है आई अभी, देव दर्शन करो, पुण्य पाओ सभी। शांत मन से चलो, कर्म अपना करो, जो तुम्हारे लिए हो, प्राप्त उसको करो। "राज" की प्रार्थना, है दिवाकर प्रभु से, भरो जग में चेतना, यूँ अपनी किरण से। ✍राजेश कुमार कुशवाहा "राज" ©राजेश कुशवाहा भोर आई है अब, जग गया है जहां, लोग चलने लगे, अब है जीना यहाँ। गाने पंछी लगे, मन मगन हो रहा, नवीन कलियों पे, भँवरा है मडरा रहा। फूल टूटेगा डाली से, बलिदान होगा, देव,दुल्हन,या शव पर ये,फिर से चढ़ेगा। शोर नदियों में है, हैं लहरे इतरा रही, प्यास तन मन की,सबकी बुझेगी यही।