पकड़ो न गिरेबाँ मेरा मज़लूम समझकर आह! मेरी उट्ठेगी महशर के रोज़ पर तिनका हूँ मैं कब हवा में उड़ जाऊँगा फूँकना जो तुम कभी तो जाँच परखकर जरूरतों ने मेरी मीलों दूर ला दिया है जी रहा हूँ मैं अब सहरा में सिसककर याद नहीं मुझको कब मनायी मैंने ईद घर-बार बच्चों के बिना जी रहा हूँ तड़पकर #nishatmahshar #shayarioflife #MinuBakshi #Hope