परखा तो बहुत लोगों ने मुझको, पर किसी ने मुझे समझा नहीं। मुझे गिराने की कोशिश तो थी पर मैं उनसे कभी उलझा नहीं। मैं बस जलता रहा दिए की तरह, नफरत की आँधियों से बुझा नहीं। रौशन करता रहा अपनी दुनियाँ, कर्म से बढ़कर कोई पूजा नहीं। यूँ तो सफर में साथी बहुतेरे थे, रब से बढ़कर हमदम दूजा नहीं।। ©Mahar Hindi Shayar #माहर_हिंदीशायर #बहुतेरे #CalmingNature