कुछ अजीब तरह से वक़्त यूँ ही गुज़र गई, लोन की EMI भरते-भरते जिंदगी पता नही कब गुजर गई। अब कागजातों के सिवाय कुछ बचा ही नही। सब किश्तों की अदायगी की स्याही भी, मुझ जैसी ही सिमट गई। ----अजित मिश्र---------