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है ये यादों से गुज़र कर गरजती रातें है ये खामोशियों

है ये यादों से गुज़र कर गरजती रातें
है ये खामोशियों में, तड़पती हुई आहें
न जाने, दे कौन सा जख्म, सुकून दिल को
है कुरेद रही पल-पल इन्हें,तरबतर निगाहें
के सिमट रही है बिखरकर, चाहतों की हवा
और सूनेपन में,झूम रही,खाली ये बाहें

©paras Dlonelystar
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