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अपनी सारी व्यथा बांट दी,सब लब्जों में लिखकर। पढ़े

अपनी सारी व्यथा बांट दी,सब लब्जों में लिखकर।
पढ़े या कोई नहीं  पढ़े, मन हुआ स्वयं ही निर्झर।

कैसे बढूं, बोझ था भारी, दूर अभी थी मंजिल।
हटा दिया सब भार हृदय से, दिखने लगी डगर।

काल जई, हो गई हूं जबसे, जहर दिया जिन्होंने।
हुआ हलाहल अमृत जैसा, होता नहीं असर।

अब तो हृदय रिक्त है मेरा, आजा गले लगा लूं l
तू ही सरबस मेरा सबको, करदो यही खबर।

सरल अनाड़ी गांव हमारा, राजनीति ने घेरा।
अपनापन खो गया कहीं, अब भाने लगा शहर।

©Kalpana Tomar
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