भोर का प्रथम प्रहर ओस की बूंदों से लथपथ मनोभाव हरसिंगार के पुष्प से लदे गुल्म से टूटकर झड़ते बिखरते शब्द कोरे पन्ने पर सफेद नारंगी कविताएँ मंद सुगंध सुवासित उंगलियों के पोर से वाष्पित होती नमी का क्षणिक माधुर्य अंतर्मन की स्मृति में ठहरे अहसास। वस्तुतः इन्हीं ठिकाने की तलाश थी मनोभावों को जहां से सुवासित होती रहे परिकल्पना। प्रीति #मनोभाव #yqdidi #yqbaba