शुण्य से उठाकर मुझको रख दिया कैलाश पे । ग्यान बनके बह रहा तू, रक्त के प्रवाह मे । ब्रम्ह सा तू ग्यानी और द्रोण सा महान है, अज्ञान के विकार का बस तू ही एक उपाय है ।। है आवाज तू अजान का, तू काफिरो का यार है । मै रात से भी लड पडू अगर तू मेरी मशाल है । ये लफ्ज तेरे यू नही, ये तशरीह-ए-इन्सान है । जीने का मर्म हो लिखा, तू वो आतिशी किताब है ।। है इल्म तेरा अफाक सा, फिर भी तू तलबगार है । है व्योम सा विशाल फिर भी तू मुख्तसार है देखे है मैने लाखो लोग पर, एक तू ही मेरी सच्चाई और बाकि दुनिया इत्तफाक है ।। -Navinya #Teacher #Poem #Navinya