हूं मैं उस पहाड़ से जहां बर्फ की वादियों लिए जनवरी का इंतजार नहीं करना पड़ता, जहां सुबह उठने के लिए अलार्म नहीं चिड़ियों की चहचहाहट ही काफी है जहां सफर के लिए गाड़ी नहीं पैदल चलने के लिए साथी ही काफी है! हूं मैं उस पहाड़ से जहां मां के प्यार, पापा की फटकार मे ही सारी दुनियां है, ऐसा जहां गंगा सी पावन नदियां है, देवताओं का एक अलग ही वास है, एक स्वर्ग सी सुंदर जगह एकअलग ही सुकून है, जहां! ये वो धरती है जहां हर मां का बेटा शूरवीर है, देवों की भूमि है, ये मेरा प्यारा उत्तराखंड है ये! #दिव्या भंडारी ©Divya Bhandari