बेगुनाह होकर भी अक्सर, गुनहगार बन गए हैं हम.......... जब से उनकी मोहब्बत के, तलबगार बन गए हैं हम.......... कुछ लोगों को चुभते हैं हम, अब नुकीले कांटों की तरह....... कुछ ज़ख़्मों पर मरहम जैसे, असरदार हो गए हैं हम........... ©Poet Maddy बेगुनाह होकर भी अक्सर, गुनहगार बन गए हैं हम.......... #Innocent#Criminal#Love#Habitual#SharpThorns#Balm#Wound#Effective........