इन्सान सपने देखता है सपने 'जिंदा' रखते हैं उसे, सपनों को सच करने की 'जाद्दोजहद' से जितना ही ज्यादा थकता है वो उतना ही भरता है 'नई उर्जा' से, ये जानते हुये कि सफ़र है 'मुश्किल' कूद पड़ता है वो, हर रोज एक नई लड़ाई हरेक लड़ाई से बढ़ जाती है उसकी 'शक्ति' थोड़ी, जीवन 'थकान का पर्याय' बन जाता है जब बन्द कर देता है वो भागना सपनों के पीछे, 'दरारें' पड़ने लगती है उसमें, रोज-रोज वो खत्म होता है पूरी तरह, मुश्किल होता है उसे 'खुद को पहचानना', साँसे लेता, चलता-फिरता वो दीखता है किसी सामान्य इन्सान की ही तरह लेकिन होता नहीं वो सामान्य, किसी की 'हत्या' कर देना मगर मत रोकना उसे सपनों के पीछे भागने से... ©sunday wali poem #writer #sundaywalipoem