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1. प्रेम की व्याकरण ( प्रेमरस) प्रेम पंथ की बनकर

1. प्रेम की व्याकरण ( प्रेमरस)

प्रेम पंथ की बनकर किताब
तुम मेरे सामने आती हो !
एक अल्हड़ से मस्त भ्रमर को
तुम पाठक कर जाती हो !!

स्वर व्यंजन के शब्द जाल को
चुपके से यार बिछाती हो !
सन्धी कर खुद हो समास
तुम प्रत्यय मुझे बनाती हो !!

क्रियाविशेषण सर्वनाम सब
तुम उपसर्ग लगाती हो !
महाप्राण का कारक बन
अन्तःस्थ हृदय हो जाती हो !! 😂
इस प्रेमग्रंथ की व्याकरण
पढ़ने में तो सहज है
समझ मुश्किल से आती है !!

तेरा ये अव्ययीभाव स्वरूप
ठगधिकार सा लगता है !
इसकी आत्मनेपद प्रक्रिया
1. प्रेम की व्याकरण ( प्रेमरस)

प्रेम पंथ की बनकर किताब
तुम मेरे सामने आती हो !
एक अल्हड़ से मस्त भ्रमर को
तुम पाठक कर जाती हो !!

स्वर व्यंजन के शब्द जाल को
चुपके से यार बिछाती हो !
सन्धी कर खुद हो समास
तुम प्रत्यय मुझे बनाती हो !!

क्रियाविशेषण सर्वनाम सब
तुम उपसर्ग लगाती हो !
महाप्राण का कारक बन
अन्तःस्थ हृदय हो जाती हो !! 😂
इस प्रेमग्रंथ की व्याकरण
पढ़ने में तो सहज है
समझ मुश्किल से आती है !!

तेरा ये अव्ययीभाव स्वरूप
ठगधिकार सा लगता है !
इसकी आत्मनेपद प्रक्रिया