ग़लत-सहीफ़हमियाँ। कुछ ऐसी हसीन हुई थीं, वो हमारी आठवीं की ग़लत-सहीफ़हमियाँ, शुरू होने वाले थे ट्यूशन, पर अच्छी कट रही थीं छुट्टियों में गर्मियाँ। साथ में पढ़ने का वैसे, दिया था हमने ही उसको, वो घनघोर उपाय, उसने भी जब मान लिया, तब दिमाग़ के घोड़े हमने बेवज़ह दौड़ाए। यूँतो दो घर छोड़ मकान था उसका, फिर भी हर मुलाक़ात पे हम सोचते थे, हमारा तो खाली दिमाग़ था, पर वो भी क्या, हमसे मिलने के मौके खोजते थे। उम्र से अपनी, थोड़े बड़े लगते हैं हम, ऐसा हमारा दोस्त बिट्टू हमसे कहता था, उस वक्त का था वो उतावलापन, के हर पसंदीदा ख़्याल मानने का जज़्बा रहता था। लड़कियों को, थोड़े बड़े, भारी आवाज़ के लड़के अच्छे लगते हैं, ऐसी गधे बिट्टू की, महान राय थी, जवाँ बचपन में तब, हम भी मूँछें देख खुश़ हो लिए, जो भी हल्की-फ़ुल्की आयी थी। साथ मुस्कुराहट के किस्से भी हुए फिर, हुई कुछ निगाहों की भी अदला-बदली, ट्यूशन का पढ़ाई पे तो असर का पता नहीं, पर हमने एकतरफ़ा मोहब्बत में पीएचडी कर ली। उसको भी थी क्या ऐसी बेकरारी, क्या इन दिलों का मिलना उसकी भी ज़रूर था, ना की कभी जानने की कोशिश हमने, हमें अपनी सोची-समझी कहानी पे, ज़्यादा गुरूर था। - आशीष कंचन #बचपन_वाला_प्यार #एकतरफ़ामोहब्बत #एकतरफ़ाइश्क़ #ग़लतफ़हमी #yqdidi #collab #yqtales #yqhindi