कहती है ये दुनिया आदमी टूट सकता नहीं, दर्द कितना भी हो डूब सकता नहीं, ज़ख़्म गहरा हो कितना ही आदमी छुपा सकता है मगर दिखा सकता नहीं, लाख गुमनाम क्यों ना हो ज़िन्दगी आदमी की, वो उठ सकता है लाख ठोकरें खाकर भी मगर बिखरता सकता नहीं, कहती है ये दुनिया आदमी टूट सकता नहीं। ©Gunjan Rajput कहती है ये दुनिया आदमी टूट सकता नहीं, दर्द कितना भी हो डूब सकता नहीं, ज़ख़्म गहरा हो कितना ही आदमी छुपा सकता है