चलते चलते कहाँ पहुंच गया हूं मैं... कहाँ गई मेरी गलियां, मेरा शहर कहाँ रह गया... ईंट ईंट जोड़ के बनाया था ये मकान... खाली कमरे हैं बचे, मेरा घर कहाँ रह गया... चिल्लाना जो चुभता थाचलते चलते कहाँ पहुंच गया हूं मैं... कहाँ गई मेरी गलियां, मेरा शहर कहाँ रह गया... ईंट ईंट जोड़ के बनाया था ये मकान... खाली कमरे हैं बचे, मेरा घर कहाँ रह गया... चिल्लाना जो चुभता था, वो अब बहोत खलता है... रुक सा गया है सब कुछ, मेरा सफर कहाँ रह गया... कहा था उसने के एक पल के लिए भी मुझसे दूर नहीं जाएगा... मजबूरियों की कैद में, मेरा दिलबर कहाँ रह गया... मजबूरियों की कैद में, मेरा दिलबर कहाँ रह गया... #MeraShehar