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औरों के यहाँ से आती ख़ुशबू गुलिस्तान सी लगती है, ज

औरों के यहाँ से आती ख़ुशबू गुलिस्तान सी लगती है,
जाने क्यों अपनी ही ज़िन्दगी क़ब्रिस्तान सी लगती है।

ख़ुद का घर भर, दूसरों के खाली मकाँ की दुआ क्यों? 
ग़मों में तो हरी-भरी ख़ुशी भी, रेगिस्तान सी लगती है। 

ख़्वाहिशों के बाज़ार में, कब पूरी कोई ज़रूरत मिली? 
तुलने के बाद हर किताब भी बे-उनवान सी लगती है। 

उँगली उठाकर अपनों पर, बड़ी शान से जीते हैं लोग, 
बेहिसाब ग़लतियों में, ख़ुद की गुन-गान सी लगती है। 

अपनी ज़िन्दगी के हर मौसम का लुत्फ़ उठाओ 'धुन', 
ग़ैरों की महफ़िल में, पहचान भी मेहमाँ सी लगती है।  बे-उनवान- Untitled

Rest Zone आज का शब्द- 'क़ब्रिस्तान'

#rzmph #rzmph42 #rzhindi #sangeetapatidar #ehsaasdilsedilkibaat #poetry #क़ब्रिस्तान
औरों के यहाँ से आती ख़ुशबू गुलिस्तान सी लगती है,
जाने क्यों अपनी ही ज़िन्दगी क़ब्रिस्तान सी लगती है।

ख़ुद का घर भर, दूसरों के खाली मकाँ की दुआ क्यों? 
ग़मों में तो हरी-भरी ख़ुशी भी, रेगिस्तान सी लगती है। 

ख़्वाहिशों के बाज़ार में, कब पूरी कोई ज़रूरत मिली? 
तुलने के बाद हर किताब भी बे-उनवान सी लगती है। 

उँगली उठाकर अपनों पर, बड़ी शान से जीते हैं लोग, 
बेहिसाब ग़लतियों में, ख़ुद की गुन-गान सी लगती है। 

अपनी ज़िन्दगी के हर मौसम का लुत्फ़ उठाओ 'धुन', 
ग़ैरों की महफ़िल में, पहचान भी मेहमाँ सी लगती है।  बे-उनवान- Untitled

Rest Zone आज का शब्द- 'क़ब्रिस्तान'

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