खो़ दिया है खुद को, बातों की भीड़ में खोया हुआ है कहीं, मन भी अपना नहीं है... आंसू थे मेरे अपने, दिए ग़म किसी और के आंखें भी अब खु़द को, क्यों देखती नहीं है.. बातें थी दुनिया की, और चुप्पी लब़ों में थी अब कहने सुनने की, कोई आरज़ू नहीं है.. समझेगा तुझे अब कौन, तीरों से घिर पड़ी है बचाने उन हाथों को, फुरसत अभी नहीं है.. दुनिया ने दिया इतना, अपना ही नहीं अपना अंधेरों में उजालों की, कोई आस ही नहीं है.. ©Swati kashyap #खो_दिया