किसी बन्द कमरे के कोने जैसा हो गया हूँ कभी कभी मैं होकर भी ना होने जैसा हो गया हूं बड़ी इजाद से रखता हूं मुस्कुराहट लबो पर रोककर मगर क्या कहूं कि दुखते दिल से अब खिलौने जैसा हो गया हूँ हाँ मेरे किरदार में समझदारी की चमक है तो नही मगर जनाब लोग कहते है कि घड़े पीतल में मैं खरे सोने जैसा हो गया हूँ तमाम ए चीज़ मैने कर ली है मुकरर जीने के लिए मगर जनाब मैं सभी कुछ पाकर भी खुद को खोने जैसा हो गया हूँ किसी बन्द कमरे के कोने जैसा हो गया हूँ कभी कभी मैं होकर भी ना होने जैसा हो गया हूं ! :अविका राठी(PearlikA) #depression ##aamil qureshi##Lipsita palae