एक झलक' ओ इश्का ही जुनून था जो मुमताज़ के लिए ताजमहल बना दिया, एक झलक के खातिर सदीओ तक प्यार का नाम रोशन कर दिया। गैरत की बात यह नहीं के हम शहनाज़ नहीं, हैरत की बात यह के तुम भी तो मुमताज़ नहीं। तुम्हने तोला मोहाब्बत को सोने के सिक्कों से, हमने मोहाब्बत को संभाला दिल के जज़्बात से। अब ना तेरी झलक दिखीगी ना तेरा दिदार होगा, मगर अफसाना मेरा सारे जहां मे मशहूर होगा।