एक दिलचस्प किताब का छोटा सा किस्सा हूँ मैं, एक नायाब खिलौने का टूटा हुआ हिस्सा हूँ मैं। उस एक कहानी में मैं भी तो किरदार हूँ उसकी नफरत का इकलौता उम्मीदवार हूँ। एक गुलशन से बिछड़ा हुआ फूल हूँ, जो कहीं जम न सके मैं वो धूल हूँ। ढूढ़ता फिर रहा मुझमें वो गुस्ताखियां मैं जो न सुधरे कभी एक अदद भूल हूँ। एक कबीले से लगता है बिसरा हूँ मैं एक अधूरी गजल का मिसरा हूँ मैं। किसी ने उछाला किसी ने संभाला किसी ने यहां यार दिल से निकाला। किस्तों में जो मिली है जिंदगी उसका पुलिंदा हूँ मैं लोगों ने कोशिश की मगर मरा नहीं बस जिंदा हूँ मैं। बीघे भर की जमीन में एक विस्वा हूं मैं तुझसे नहीं यार बस खुद से रुसवा हूँ मैं। चलो अब एक आखिरी शर्त लगाता हूँ मैं दांव पे खुद को रखता हूँ और हार जाता हूँ मैं। #माधवेन्द्र_फैजाबादी