चराग़ों से रौशन करने चले थे हम अपना आशियां, इन्हीं चराग़ों से हाथ अपने जला बैठे, मुक़म्मल करने की नीयत थी हमारी मकां को, मकां को घर बनाना दूर, मकां ही अधूरा छोड़ बैठे... ©ऋषि 'चित्रांश' #dunia #jagdalpur #shayarchitransh #rishichitransh