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एक रम्य वाटिका मे एक था कपोत युग्म चोंच-चोंच मे न

एक रम्य वाटिका मे एक था कपोत युग्म 
चोंच-चोंच मे निबध्द मग्न मनोहार मे 
इस आसार विश्वा सार का गहे थे सार-सार 
डूबते उतारते थे प्रेम पारावार मे 
 कोई परवाह थी, ना चाह थी, ना डाह थी, 
ना सुविधा,असुविधा की दुविधा विचार मे 
सोचता हूँ दीन दुनियां से दूर थोड़ी देर 
काश पक्षी होना होता मेरे अधिकार मे
एक रम्य वाटिका मे एक था कपोत युग्म 
चोंच-चोंच मे निबध्द मग्न मनोहार मे 
इस आसार विश्वा सार का गहे थे सार-सार 
डूबते उतारते थे प्रेम पारावार मे 
 कोई परवाह थी, ना चाह थी, ना डाह थी, 
ना सुविधा,असुविधा की दुविधा विचार मे 
सोचता हूँ दीन दुनियां से दूर थोड़ी देर 
काश पक्षी होना होता मेरे अधिकार मे