किस ओर तुम हो इस तरफ मैं हूँ शशांकित भावनाओं के समुन्द्र में। खुद से अलग होकर मैं किस ओर हूँ उस तरफ तुम हो द्रवित, साथ साथ चलना थक जाना मालूम है अंत भावनाओं का कुचल जाना अपनी अपनी दुनिया में लड़ना आराम करना थकावट का मिट जाना, इस ओर तुम्हारा आना मेरा उस ओर जाना नियत है तुम्हारा खुद से बिखर जाना मेरा खुद से बिखर जाना फिर से साथ आना फिर बिछड़ जाना। विरक्ति की भावना का पनपना भावनाओं के समुन्द्र का थम्भ जाना इस ओर तुम्हारा आना इस ओर मेरा आना न साथ चलना न बिछड़ना न थकना न अराम करना किस ओर तुम हो इस तरफ मैं हूँ शसंकित। "विक्रम प्रशांत" ©Vikram Prashant "Tutipanktiyan " किस ओर तुम हो