मुकद्दर मोहलत दे तो ये क़िस्सा लिखूँगी ख़ुद को आपका, और आपको अपना हिस्सा लिखूँगी पहले तो ग़लती का मतलब समझाऊंगी फिर बेवफ़ाई को गुनाह ए कबीरा लिखूँगी जहां बात होगी पाकीज़ः जज़्बों की वहाँ मोहब्बत को पर्दाः और इश्क़ को सजदाः लिखूँगी सवाल उठेगा जब दुआ की ताक़त पर तो यक़ीन की जगह करिश्मा लिखूँगी जिन आँखों से देखते हैं आप मुझको उन आँखों के हुस्न पर क़ासीदाः लिखूँगी कोई मुझसे पूछे अगर ताअरूफ़ आपका तो आपको ख़ुदा से मुलाक़ात का ज़रीया लिखूँगी.. #अज्ञात #HR_51 aali_paul anjan