क्योंकि आज चाँद में कुछ अलग ही शिद्दत है, सच मानो, बेहद खूबसूरत। माना तुम भी मसरूफ हो अब, माना अब वो दौर नहीं रहा जब हम चाँद तले अपनी दुनिया के ख्वाब देखते थे। माना, तुमसे बात किये एक अरसा गुज़र गया है। माना, हमारी कहानी एक दिन उस मोड़ पर सर्दी के कुहासे में हमेशा के लियी गुम हो गयी। माना अब हमारे बीच फासले क्या, कोई सरोकार ही नहीं। शायद हम कभी टकराएं, तो एक दूसरे को पहचान भी ना पाएं। कभी धड़कन से ज्यादा अजीज़ थे हम, कैसे गैरों से ज्यादा गैर हो गए? हमने अपनी मोहब्बत को किस कदर अंजान बनते देखा है, हमने अपने दावों को खाली आँखों से ख़ाख होते देखा है। अलाव में मद्धिम आंच पर पकी मोहब्बत को अचानक ठंड में ठिठुरकर मरते देखा है। कितना कुछ साथ देखा, एक चाँद के सिवा। खैर, सच मानो, आज का चाँद बेहद खूबसूरत लग रहा है, हूबहू वैसा , जैसा उस कुहासे वाली आख़री रात में था। बेहद अजीज़। तुम सा !