"रिश्तेदार तो बहुत है ज़माने में,, पर 'रिश्ते' काफी कम नजर आते है।" रिश्तों का भंवर है ये,, लगता तो काफी आसान है उससे निकल जाए, सब छोड़ चले जाए,,। पर क्या वाकई में हम रिश्तों से दूर जा पाते है कभी...? शायद नही,,। इनको संभालना काफी मुश्किल है,,,स्वयं को चीरकर, स्वयं ही सिलना पड़ता है,,, खुद को हारकर, सबको जितना पड़ता है,,, तब जाके रिश्ते,, ’रिश्तों’ के स्वरूप में जिंदा रह पाते है,,,। जिम में पसीना बहाकर अपने आप को मजबूत समझता इंसान,, रिश्तों की नाजुक डोर को सम्हालने में नाकाम और लाचार नजर आता है,,,। सच्चाई यही है कि इस हाय, हेलो के ज़माने में घूटघुट कर खुदकुशी करते रिश्ते अब विलुप्त होने की कगार पर है,,। #SaveRelations #SaveRelations