पानी से उठा था,फिर पानी में गिर गया एक बुलबुला था ज़िदंगी का,जो हवा में उड़ गया काम नहीं आई कोई,तरकीब भी कभी जिधर ले चली हवाएं,उधर वो उड़ गया पुराने रास्ते भी अभी,ख़त्म हुए थे कहां नए रास्तों पर जब वो,अजनबी सा मुड़ गया लोग मिलते भी रहे,लोग बिछुड़ते भी रहे अकेला ही वो चला था,वो अकेला ही रह गया बहुत ख़ामोश होकर,उसे देख हम रहे थे वो बिखर रहा था मुझमें,उसे समेट हम रहे थे कोशिशें तो बहुत की थी,पर उसे तोड़ ना सका साज़िशें करके भी ये ज़माना,उसे रोक ना सका आख़िर पहुंच ही गया वो,अपने मुकाम पर भी पानी का एक बुलबुला था,जो फिर पानी में मिल गया... © abhishek trehan www.therealdestination.com 🎀 Challenge-353 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 8 पंक्तियों अथवा 50 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।